Sunday, April 24, 2016

सात बेटियों वाले बाप का बेटा...

23 अप्रैल 2016:
आज बाबूजी (पिता) बहुत याद आए।उनकी सात बेटियाँ थीं।मुझे बुलाते तो अमूमन मेरे नाम के पहले  लगभग सभी बेटियों के नाम वे लेते जिससे मुझे कोफ्त होती थी।लेकिन यह कोफ्त बर्फ की तरह पिघल जाती थी जब अहसास होता कि पिताजी बड़े भाई साहेब का नाम अक्सर नहीं लेते थे।सोचता , चलो कोई तो है जिससे वे मुझे ज्यादा प्यार करते हैं।
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इसके बाद जैसे-जैसे मैं बड़ा होता गया बहनें मुझे माँ और दोस्त भी लगने  लगीं।एक ऐसे परिवार में मैं बड़ा हो रहा था जो पुरुष-प्रधान समाज में भी घर के बड़े फैसलों में स्त्रियों को बराबर की अहमियत देता था।मेरी दो बहने तो लक्ष्मी बाई की अवतार ही थीं।लाठी-भाला-गाली-गलौज-लात-जूते तो मानों जैसे सलवार पर पड़ी धूल हो जिसे झाड़ने में वे एकदम कोताही नहीं करतीं थीं।लेकिन ऐसा करना वे अपना एकाधिकार समझती थीं, मेरे लिए वह सब एकदम वर्जित था खासकर महिलाओं के मामले में।
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जब बेटियों से मिलने का मन हो तो बाबूजी माँ से झगड़ा करके अक्सर शाम को घर से निकल जाते थे।हफ्ते भर बाद लौटते मानों किसी हिल-स्टेशन से होकर आये हों, चुस्त और खुश।
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अंतिम समय में उन्होंने सभी बेटियों को अपने पास बुला लिया था , शायद यह सोचकर कि मानों वे उनके स्वर्ग की सीढ़ियाँ हों।बेटियाँ होती ही ऐसी हैं।
ऐसा नहीं कि बाबूजी सिर्फ अपनी बेटियों पर ही प्यार बरसाते थे, गाँव-घर की अन्य बेटियों को भी उनके साथ अपने बाप की कमी नहीं खलती थी।पता नहीं कहाँ से इतना सारा प्यार वो लाते थे जिसका सोता कभी सूखता ही नहीं था।
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लेकिन सात बहनों के मुझ भाई को बेटी नहीं हुई तो अपने माँ-बाप से ईर्ष्या भी हुई और उनपर थोड़ा गुस्सा भी आया कि मेरे कोटे का पुत्री-सुख वे खुद ही मार ले गए नहीं तो एक हमें भी मिल जाती।खैर,  कोसने से क्या होना था।
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इसी बीच मैं पत्रकारिता को अलविदा कह पढ़ाने लग गया और इसकी शुरुआत हुई आईआईएमसी -दिल्ली से जहाँ मुझे 2003 की अंग्रेज़ी पत्रकारिता की क्लास में गरिमा दत्त मिलीं।ऑल इन वन गरिमा दत्त-- मानों अर्द्धनारीश्वर की साकार परिकल्पना हो।
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बेचारे जिन लोगों ने उन्हें  सिर्फ मादा समझा उन्हें गरिमा के रौद्र- रूप के दर्शन हुए और जिन्होंने सिर्फ 'मर्दानी' समझा वे उनके प्रगल्भ नारी-रूप से वंचित रह गए।
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बहरहाल, मेरे जीवन में गरिमा दत्त के आने से अपने माँ-बाप के प्रति मेरा गुस्सा काफूर हो गया।मिस ऑल-इन-वन दत्त ने मुझे वह सब दिया जो दो-चार बेटियों वाले को भी शायद ही मिलता होगा।
एक और बात।दस साल बाद इंडस्ट्री में ऊँचे पदों पर हाड़-तोड़ काम करते हुए भी गरिमा ने गेस्ट फैकल्टी की हैसियत से आईपी यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों को न्यू मीडिया के बारे में जो पढ़ाया वो भारत तो क्या दुनिया के किसी भी शिक्षक के लिए ईर्ष्या की बात होगी।
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गरिमा, तुझे सलाम।
तुम्हारे माता-पिता को सलाम कि उन्होंने तुम्हें तुम जैसा बनने दिया और इसके लिए बड़े दंश झेले।
अरविंद, आपको सलाम कि आप उसके सपनों में अँटे और आप दोनों ने जीवन-साथी बनने का फैसला किया।
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हमारी हार्दिक बधाई और अक्षय शुभकामनाएँ!

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