बाबा साहेब अंबेडकर के नाम खत-1
बाबा साहेब,
जय भीम जय भारत!
पता नहीं क्यों आज (14 अप्रैल) आपकी याद आते ही बाबू बालमुकुन्द गुप्त के 'शिवशंभो के चिट्ठे' भी याद या गए सो थोड़ी बूटी छानी और चढ़ा ली।फिर होश ही नहीं रहा कि आपको खत लिखने के पहले कंठ लंगोट (टाई) बाँध लें।
*
इसी चक्कर में एक और ब्लंडर हो गया।आप समझ ही गए होंगे कि भाँग की जगह अगर शराब पी होती तो अभी अंग्रेज़ी में लिख रहे होते और आपको वीर सावरकर की मदद से हिन्दी में लिखी पाती पढ़ने की नौबत नहीं आती।
लेकिन मुझे विश्वास है कि लार्ड मैकाले हमें हिन्दी में खत लिखने और आपको पढ़वाकर सुनने की गलती के लिए माफ कर देंगे क्योंकि वे तो काले अंग्रेज़ों के लिए भगवान ईशू की तरह हैं और ईशू तो कन्फेशन के बाद हजार गलतियाँ भी माफ कर देते हैं।
*
खैर अब आते हैं मुद्दे पर।यह पाती पाती कम और स्वयंभू दलित चिंतकों की चुगली ज्यादा है।आप तो जानते ही हैं कि आजकल ई भाई लोग आपको भारत के एकमात्र संविधान -निर्माता के रूप में मार्केट कर रहा है जबकि संविधान सभा की अंतिम बैठक (26 नवंबर 1949? ) को संबोधित करते हुए आपने साफ-साफ स्वीकार किया था कि आपका मुख्य काम संविधान-सभा द्वारा स्वीकृत बातों को कागज पर उतारना था, उस संविधान सभा की बहसों को ठोस रूप देना था जिसके पहले सभापति डा सच्चिदानंद सिन्हा और दूसरे तथा अंतिम सभापति डा राजेन्द्र प्रसाद थे।
*
मुझे तो डर लग रहा है कि जैसे पंडित वीर जवाहरलाल ने गाँधी जी से टोपी लेकर गाँधीवाद को टोपी पहना दी, नागार्जुन ने संस्कृत में बौद्ध धर्म को लिखकर भगवान बुद्ध को देशनिकाला दे दिया वैसे ही कहीं ई चिंतक भाई लोग आपकी विशालकाय मूर्तियाँ बनाकर आपके काम को जय-भीमिया न दे।चेलों ने किसको छोड़ा है कि आपको छोड़ेंगे।
(जारी...)
जय भीम जय भारत!
पता नहीं क्यों आज (14 अप्रैल) आपकी याद आते ही बाबू बालमुकुन्द गुप्त के 'शिवशंभो के चिट्ठे' भी याद या गए सो थोड़ी बूटी छानी और चढ़ा ली।फिर होश ही नहीं रहा कि आपको खत लिखने के पहले कंठ लंगोट (टाई) बाँध लें।
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इसी चक्कर में एक और ब्लंडर हो गया।आप समझ ही गए होंगे कि भाँग की जगह अगर शराब पी होती तो अभी अंग्रेज़ी में लिख रहे होते और आपको वीर सावरकर की मदद से हिन्दी में लिखी पाती पढ़ने की नौबत नहीं आती।
लेकिन मुझे विश्वास है कि लार्ड मैकाले हमें हिन्दी में खत लिखने और आपको पढ़वाकर सुनने की गलती के लिए माफ कर देंगे क्योंकि वे तो काले अंग्रेज़ों के लिए भगवान ईशू की तरह हैं और ईशू तो कन्फेशन के बाद हजार गलतियाँ भी माफ कर देते हैं।
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खैर अब आते हैं मुद्दे पर।यह पाती पाती कम और स्वयंभू दलित चिंतकों की चुगली ज्यादा है।आप तो जानते ही हैं कि आजकल ई भाई लोग आपको भारत के एकमात्र संविधान -निर्माता के रूप में मार्केट कर रहा है जबकि संविधान सभा की अंतिम बैठक (26 नवंबर 1949? ) को संबोधित करते हुए आपने साफ-साफ स्वीकार किया था कि आपका मुख्य काम संविधान-सभा द्वारा स्वीकृत बातों को कागज पर उतारना था, उस संविधान सभा की बहसों को ठोस रूप देना था जिसके पहले सभापति डा सच्चिदानंद सिन्हा और दूसरे तथा अंतिम सभापति डा राजेन्द्र प्रसाद थे।
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मुझे तो डर लग रहा है कि जैसे पंडित वीर जवाहरलाल ने गाँधी जी से टोपी लेकर गाँधीवाद को टोपी पहना दी, नागार्जुन ने संस्कृत में बौद्ध धर्म को लिखकर भगवान बुद्ध को देशनिकाला दे दिया वैसे ही कहीं ई चिंतक भाई लोग आपकी विशालकाय मूर्तियाँ बनाकर आपके काम को जय-भीमिया न दे।चेलों ने किसको छोड़ा है कि आपको छोड़ेंगे।
(जारी...)
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