...क्योंकि केरल की जीशा शूद्र थी, दलित नहीं!
...क्योंकि केरल की जीशा शूद्र थी, दलित नहीं!
जैसे काफ़िरों को शाँतिदूत अल्लाह की क़ायनात में दोयम दर्जे का मनुष्य मानते उसी तरह जेएनयू मार्का दलित चिंतक भी सभी शूद्रों को पूरा दलित नहीं मानते।जानते हैं क्यों?
# क्योंकि शूद्र जमीन से जुड़े हैं जबकि दलित हवा-हवाई हैं;
# क्योंकि शूद्र देवी दुर्गा को गालियाँ नहीं देते;
# क्योंकि शूद्र कबीर के नक्शे कदम श्रम के सौन्दर्य के पुजारी है जबकि दलित एकनंबरी कामचोर और मानसिक गुलाम;
# क्योंकि शूद्र न बीफ पार्टी देते हैं न ही अफ़ज़ल गुरु और याकूब मेमन जैसे देशद्रोहियों के लिए ज़िंदाबाद के नारे लगाते हैं;
# क्योंकि शूद्र अपनी इज्जत पर हाथ उठाने वालों के हाथ उठने लायक नहीं छोड़ते जबकि दलित उनके साथ सत्ता और भौतिक सुख के लिए गवबहियाँ करते हैं।
# तो शाँतिदूतों के रहम का शिकार हुई केरल की लड़की सिर्फ और सिर्फ शूद्र थी, दलित नहीं...भला सेकुलर-दलित-वामी गिरोह क्यों अपना टाइम खराब करे इस वर्ग-दुश्मन पर?
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