Thursday, June 2, 2016

इस्लामी शासन, कम्युनल दंगे और सेकुलर इतिहासकार...


इस्लामी शासन, कम्युनल दंगे और सेकुलर इतिहासकार...

सर्वश्री इरफान हबीब, स्व. रामशरण शर्मा , मुखिया और सुश्री थापर ने 50 सालों तक मंदिर-मस्जिद मामले में देश को गुमराह किया । इसमें कोई भी पुरातत्वविद् नहीं पर पुरातात्विक मामले में कम्युनिस्टों की पार्टी लाइन लेकर चलते रहे।यह बात इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले से साफ है।
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बात रही मुसलमान बुद्धिजीवियों की तो वहाँ तो मध्यवर्ग का हाल 'जंगल में मोर नाचा किसने देखा' वाला है।ज्यादातर के लिए भारत काफ़िरों का देश है जिसे ग़ज़वा-ए-हिन्द के द्वारा दारूलस्सलाम बनाना है।नहीं तो शाहबानो मामले में मुस्लिम आभिजात्य और कठमुल्लों में कोई अंतर हो तो बताते चलिये।
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कबीर, रसखान, दारा शिकोह, बाबा बुल्ले शाह, अब्दुल कलाम, आरिफ मोहम्मद खान या अब्दुल हमीद मुसलमानों के आइकाॅन नहीं हैं, क्यों?
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11 वीं से 18वीं सदी तक के 700 साल कैसे रहे होंगे उसका ट्रेलर कश्मीर (19 जनवरी 1990 : हिन्दुओं के लिए घाटी छोड़ने की डेडलाइन) में तो आजादी के बाद भी दिख गया।
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गुजरात के दंगे अक्सर मिसाल के तौर पर पेश किए जाते हैं , इसलिए सेकुलर-वामी-इस्लामिस्ट मित्रों से कुछ सवालः

# हिन्दुस्तान के किस हिन्दू बहुल इलाके से तीन लाख से ज्यादा मुसलमानों का पलायन हुआ था?
# गुजरात में कितने मरे थे और कितने हिन्दू वहाँ पुलिस की गोली से मरे?

# मोदी शासन (2002-14) के दौरान कितने मुसलमान कम्युनल गुजरात से सेकुलर बिहार-यूपी-बंगाल गये ?

# कितने मुसलमान इन सेकुलर राज्यों से कम्युनल गुजरात गये?

# गोधरा-नरसंहार क्या नरसंहार न होकर कारसेवकों द्वारा सामूहिक आत्महत्या की मिसाल था?

# दिल्ली दंगे सेकुलर और गुजरात दंगे कम्युनल हैं?

स्वयंभू पब्लिक इंटेलेक्चुअल हबीब और थापर और उनके सेकुलर-वामी शिष्य कुछ इसपर भी रोशनी डालें ।

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