Thursday, August 25, 2016

ईश्वर, अल्ला, धर्म और मजहब

ईश्वर, अल्ला, धर्म और मजहब

संता: ईश्वर और अल्ला तो एक ही है न ?
बंता: ऐसा जरूर होता अगर धर्म और मजहब एक ही  होता।
संता: मतलब?
बंता: मजहब तो ज़न्नत प्राप्त करने का एक मैन्युअल है जिसमें आगे-पीछे इधर-उधर की कोई गुंजाइश नहीं है।
संता: और धर्म?
बंता: यह तो कर्त्तव्यबोध की एक कामधेनु-नाव है जिससे निजी और सामाजिक जीवन की वैतरणी को पार किया जा सकता है।
संता: ये थोड़ा जटिल नहीं है?
बंता: जीवन कोई कम जटिल है!
संता: मैं कह रहा था कि धर्म की इस जटिलता का मजहबी लोग बड़ा मज़ाक उड़ाते हैं।
बंता: वे ज़िन्दगी का भी ऐसे ही मज़ाक उड़ाते हैं।
संता: सो कैसे?
बंता: मजहब के नाम पर कभी पेशावर में नन्हे बच्चों को हलाल करते हैं तो कभी इराक़-सीरिया-भारत में औरतों का सामूहिक बलात्कार।

(डॉ प्रदीप सिंह के लिए।)

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