Wednesday, December 21, 2016

नफ़रत फैलानेवालों पर देशद्रोह का मुकदमा चले: असग़र वज़ाहत

हिंदी के स्वनामधन्य उपन्यासकार प्रोफेसर असग़र वजाहत ने लिखा है कि नफ़रत फैलानेवालों पर देशद्रोह का मुकदमा चलना चाहिए।

बात तो एकदम सही है और इसके लिए ज़रूरी है कि नफरत के मूल स्रोतों कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो और क़ुरानेपाक में क्रमशः बुर्जुआ और काफ़िर को सर्वहारा और मुसलमान के बराबर अधिकार दिए जाएँ।

ये दोनों मजहब ऐसे सॉफ्टवेयर की तरह हैं जिनको आजतक अपडेट ही नहीं किया गया जिसकी वजह से इनको इस्तेमाल करनेवाले हार्डवेयर (कम्युनिस्ट और मुसलमान) हैंग होते रहते हैं और नाहक आलोचना के पात्र बनते हैं।

पिछले 1400 सालों में इन दो मजहबों के नाम पर 35 करोड़ से ज्यादा लोग मारे गए हैं। धर्म तो विरुद्धों का सामंजस्य है जबकि मजहब एक बुलडोज़र की तरह ख़ुद से इतर को ध्वस्त करता चलता है। मजहब-रिलिजन-दीन स्वभाव से ही मतान्ध होते हैं।

भोपाल में प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन सिमी के आठ लोग जेल तोड़कर भागे (एक बार पहले भी ऐसा कर चुके थे) और एनकाउंटर में मारे गए। लेकिन कम्युनिस्ट-इस्लामिस्ट उनकी पृष्ठभूमि, जेल तोड़ने की घटना और इस दरम्यान एक गार्ड की गला रेतकर हत्या की भी जाँच के बजाये सिर्फ एक राग अलाप रहे हैं कि एनकाउंटर फेक है। ऐसा इसलिए कि दोनों के लिये इतर मत वाले की जान का कोई महत्व नहीं है।

अगर बात सिर्फ फेक एनकाउंटर की होती तो अफ़ज़ल गुरु और याकूब मेमन को तो सुप्रीम कोर्ट ने फाँसी दी थी फिर भी कम्युनिस्ट-इस्लामिस्ट गठजोड़ ने इसे न्यायिक हत्या की संज्ञा क्यों दी? इसी मतान्धता के तहत वे समान नागरिक संहिता का विरोध और तीन तलाक़ का समर्थन करते हैं।
2.11.16

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