शुभ क्रिसमस! शुभ तुलसी पूजन!! शुभ मालवीय जयंती!!! शुभ ये शुभ वो...
हम आज क्रिसमस मना रहे हैं,
हम आज तुलसी पूजन कर रहे हैं और
हम आज मालवीय जी और अटल जी के जन्मदिन मना रहे हैं।
यह सब जानते हुए कि ईसा मसीह का असली जन्मदिन कुछ और है, हम घनघोर रूप से उत्सवधर्मी हैं और सबकी ख़ुशी में खुश होना चाहते हैं और जानते हैं जो अपने को ईसाइयत के केंद्र होने का दावा करनेवाले पश्चिमी गोरे कत्तई नहीं जानते। नहीं तो ईसा मसीह के जन्म-मृत्यु की असलियत बतानेवाले ओशो को रीगन प्रशासन थेलियम ज़हर देकर देशबदर नहीं करता।
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ईसा मसीह को बौद्ध परम्परा में बोद्धिसत्व माना जाता है, उनके सरमन ऑन द माउंट में बुद्ध के सारनाथ-उपदेश देख लीजिये। वे मरे भी लंबी आयु में कश्मीर में, उनके बचपन के महत्वपूर्ण साल भी यहाँ बीते।
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वैसे यह बात जर्मन मजहब-शास्त्री Holger Kirsten ने अपनी पुस्तक Jesus Lived in India (Penguin, 1984) में भी कही थी। लेकिन कहाँ वो गोरा जर्मन और कहाँ एक ग़रीब देश का साधू ओशो। फिर गोरो ने तो अश्वेतों को सभ्य बनाने का बोझा (Whiteman's Burden) भी उठाया था : उन्हें जन्म लेने के पाप से मुक्ति दिलाकर, उन्हें ईसाई बनाकर! वैसे ईसा के मूल प्रवचन में यह नहीं है, ईसाई उपनिवेशवादियों ने पूरी दुनिया पर चर्च के मार्फत बौद्धिक राज करने के लिये यह साज़िश रची थी। लेकिन यह सोच ईसाइयत का हिस्सा आज भी है और लंबे समय से है।
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क्या यह बताने की भी जरुरत है कि महात्मा बुद्ध ईसा से लगभग छह सौ साल पहले हुये थे और ईसा भई भारत के कम्युनिस्ट एक ज़माने में 15 वीं सदी के कबीर को मार्क्सवादी (मार्क्स 19 वीं सदी में थे) कहने का रिकॉर्ड बना चुके हैं!
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शुभ क्रिसमस!
शुभ तुलसी पूजन!!
शुभ मालवीय जयंती!!!
शुभ अटल जयंती!!!!
शुभ ये शुभ वो...
*
ओशो के उस प्रवचन के महत्वपूर्ण अंश का लिंक भी जो हमें श्री Ravishankar Singh सौजन्य से प्राप्त हुआ है:
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=627919664046938&id=100004867300433
25।12।16
हम आज तुलसी पूजन कर रहे हैं और
हम आज मालवीय जी और अटल जी के जन्मदिन मना रहे हैं।
यह सब जानते हुए कि ईसा मसीह का असली जन्मदिन कुछ और है, हम घनघोर रूप से उत्सवधर्मी हैं और सबकी ख़ुशी में खुश होना चाहते हैं और जानते हैं जो अपने को ईसाइयत के केंद्र होने का दावा करनेवाले पश्चिमी गोरे कत्तई नहीं जानते। नहीं तो ईसा मसीह के जन्म-मृत्यु की असलियत बतानेवाले ओशो को रीगन प्रशासन थेलियम ज़हर देकर देशबदर नहीं करता।
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ईसा मसीह को बौद्ध परम्परा में बोद्धिसत्व माना जाता है, उनके सरमन ऑन द माउंट में बुद्ध के सारनाथ-उपदेश देख लीजिये। वे मरे भी लंबी आयु में कश्मीर में, उनके बचपन के महत्वपूर्ण साल भी यहाँ बीते।
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वैसे यह बात जर्मन मजहब-शास्त्री Holger Kirsten ने अपनी पुस्तक Jesus Lived in India (Penguin, 1984) में भी कही थी। लेकिन कहाँ वो गोरा जर्मन और कहाँ एक ग़रीब देश का साधू ओशो। फिर गोरो ने तो अश्वेतों को सभ्य बनाने का बोझा (Whiteman's Burden) भी उठाया था : उन्हें जन्म लेने के पाप से मुक्ति दिलाकर, उन्हें ईसाई बनाकर! वैसे ईसा के मूल प्रवचन में यह नहीं है, ईसाई उपनिवेशवादियों ने पूरी दुनिया पर चर्च के मार्फत बौद्धिक राज करने के लिये यह साज़िश रची थी। लेकिन यह सोच ईसाइयत का हिस्सा आज भी है और लंबे समय से है।
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क्या यह बताने की भी जरुरत है कि महात्मा बुद्ध ईसा से लगभग छह सौ साल पहले हुये थे और ईसा भई भारत के कम्युनिस्ट एक ज़माने में 15 वीं सदी के कबीर को मार्क्सवादी (मार्क्स 19 वीं सदी में थे) कहने का रिकॉर्ड बना चुके हैं!
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शुभ क्रिसमस!
शुभ तुलसी पूजन!!
शुभ मालवीय जयंती!!!
शुभ अटल जयंती!!!!
शुभ ये शुभ वो...
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ओशो के उस प्रवचन के महत्वपूर्ण अंश का लिंक भी जो हमें श्री Ravishankar Singh सौजन्य से प्राप्त हुआ है:
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=627919664046938&id=100004867300433
25।12।16
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