तारेक फ़तह की लोकप्रियता हमारी बौद्धिक कायरता का प्रमाण है
तारेक फ़तह की लोकप्रियता हमारी बौद्धिक कायरता का जीवंत प्रमाण है
■ हिन्दुतान के पढ़े-लिखे लोगों का एक बहुत बड़ा हिस्सा तारेक फ़तह का फैन है। ऐसा क्यों? तारेक फ़तह मुसलमानों और इस्लाम के मुतल्लिक बेबाक और दोटूक बात बोलते हैं जिसे हिन्दुस्तान के बुद्धिजीवी भी जानते हैं लेकिन कहने की हिम्मत नहीं रखते।
■ तारेक औरंगज़ेब की जगह दारा शिकोह को हिन्दुस्तानी रवायत का असली चेहरा मानते हैं। उन्होंने ही औरंगज़ेब रोड के साइनबोर्ड को हटाने की पहल की थी। आज उसका नाम अब्दुल कलाम रोड है। भारत के बुद्धिजीवी भी अंदर से यही चाहते हैं (लेकिन इसे कहने या करने की हिम्मत नहीं करते) , इसीलिए तारेक फ़तह आज उनके हीरो हैं।
■ इस लिहाज से तारेक फ़तह की लोकप्रियता के मूल में है यहाँ की बुद्धिजीवी-कायरता। लब्बोलुआब यह कि भारत के पढ़े-लिखे लोगों की बौद्धिक कायरता के जीते-जागते सबूत हुए तारेक फ़तह। उसी तरह वे वामपंथी-सेकुलर-उदार-इस्लामपरस्त बुद्धिजीवियों की मानसिक गुलामी और दोमुँहेपन के भी जीवंत सबूत हैं।
4।10।16
■ हिन्दुतान के पढ़े-लिखे लोगों का एक बहुत बड़ा हिस्सा तारेक फ़तह का फैन है। ऐसा क्यों? तारेक फ़तह मुसलमानों और इस्लाम के मुतल्लिक बेबाक और दोटूक बात बोलते हैं जिसे हिन्दुस्तान के बुद्धिजीवी भी जानते हैं लेकिन कहने की हिम्मत नहीं रखते।
■ तारेक औरंगज़ेब की जगह दारा शिकोह को हिन्दुस्तानी रवायत का असली चेहरा मानते हैं। उन्होंने ही औरंगज़ेब रोड के साइनबोर्ड को हटाने की पहल की थी। आज उसका नाम अब्दुल कलाम रोड है। भारत के बुद्धिजीवी भी अंदर से यही चाहते हैं (लेकिन इसे कहने या करने की हिम्मत नहीं करते) , इसीलिए तारेक फ़तह आज उनके हीरो हैं।
■ इस लिहाज से तारेक फ़तह की लोकप्रियता के मूल में है यहाँ की बुद्धिजीवी-कायरता। लब्बोलुआब यह कि भारत के पढ़े-लिखे लोगों की बौद्धिक कायरता के जीते-जागते सबूत हुए तारेक फ़तह। उसी तरह वे वामपंथी-सेकुलर-उदार-इस्लामपरस्त बुद्धिजीवियों की मानसिक गुलामी और दोमुँहेपन के भी जीवंत सबूत हैं।
4।10।16
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