Wednesday, October 21, 2015

संहार शक्ति दे, क्रोध दे, विवेक दे, हे माते!

हे दुर्गा माँ,
आज इस देश को जितनी आपके प्रचंड क्रोध और निर्विकार शक्ति की जरूरत है
उतनी पहले कभी नहीं थी।

हमें निर्विकार पर असीम शक्ति दो,
प्रचंड क्रोध और विवेक-सम्मत समय-बोध दो
ताकि अपनी कमियों और आततायी दुश्मनों का
हम संहार कर सकें , उन्हें नेस्तनाबूद कर सकें ।

इसका पहला चरण है मानसिक गुलामी से मुक्ति।

इसलिए इस देश के बुद्धिजीवी तबके पर खास कृपा बरसाओ नहीं तो एक सड़े आम की तरह वह पूरी टोकरी को सड़ा देगा...

अबतक इस देश को कम पढ़ेलिखे
और
गरीब देशप्रमियों ने बचा रखा था
आस्थावान महिलाओं की फौज ने बचा रखा था।

लेकिन
अब पढ़े-लिखों की बारी है
जो ज्यादातर जाने-अनजाने देशतोड़क हैं...
कायर और बुद्धिविलासी हैं...
इन्हें अपने-पराये का भेद भी नहीं पता
इतने पतित हैं ये पढ़ुआ लोग...

 मेरे गाँव में एक कहावत है:
'जे जेतना पढ़ुआ,
उ ओतना भड़ुआ'।

हे माते!
अब तो इनका उद्गार कर दो
इस कहावत को झूठा साबित कर दो
और
'नव गति नव लय ताल छंद नव
भारत में भर'  दो।

जब से आप यूरोप-अमेरिका-जापान-चीन-कोरिया की
यात्रा पर गई हैं
तब से भारतभूभि  तन और मन दोनों से लहूलुहान है ।
आपको ये सब ठीक नहीं लगेगा
एक बार देख तो लीजिए आकर ।

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