Tuesday, October 6, 2015

#प्रयाग बनाम #इलाहाबाद


#इलाहाबाद में नदियाँ मिल ही नहीं सकतीं, यह संगम तो प्रयाग में ही संभव है। अल्लाहाबाद में यह क्षमता होती तो एक भाषा #अरबी और एक मजहब #इस्लाम वाले #अरब में 20 देश नहीं बनते।
संगम वाले देश में तो दर्जनों मत-मतांतरों और भाषाओं के बावजूद देश एक है जिसे , आगर आपको याद हो , #भारत कहते हैं ।
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कल यानी रविवार 4 सितंबर को #प्रयाग में #संगम स्नान के लिए गया था।#गंगा, #यमुना और अंतःसलीला #सरस्वती  के मिलन-स्थल को संगम कहते हैं।तीन नदियों के मिलने के कारण #त्रिवेणी भी कहते हैं।
फिर #इलाहाबाद (अल्लाहाबाद) कहाँ से आ गया?
इसकी जरूरत ही क्यों पड़ी?
ये #गंगा_यमुनी_संस्कृति क्या है? इसमें से अंतःसलीला सरस्वती क्यों और कैसे ग़ायब हो गई?
इस संस्कृति से सरस्वती ग़ायब हुई या कर दी गई?
क्या #नालंदा_विश्वविद्यालय_दहन करने वाले बख़्तियार ख़िलज़ी और उसके जैसे अन्य ग़ाज़ियों ने  'सरस्वती' को ग़ायब किया हमारी संस्कृति से?
गंगा-यमुनी  संस्कृति से पहले भारत में कौन सी संस्कृति थी कि उसे हटाकर गंगा-यमुनी को लाने की जरूरत महसूस हुई?
और क्या इसी #गंगा_यमुनी के तहत प्रयाग को इलाहाबाद (अल्लाहाबाद) कर दिया ?
संगम पर तो सभी धर्मभाव से अवगाहन करते हैं...त्रिवेणी प्रतीक है देने को तत्पर लोगों का...संगम अगर अल्लाहाबाद (इलाहाबाद) हो सकता तो यहाँ अंतःसलीला सरस्वती की कौन कहे, गंगा चाहे जमुना भी विलुप्त हो गई होती!

इलाहाबाद में नदियाँ मिल ही नहीं सकतीं, यह संगम तो प्रयाग में ही संभव है। अल्लाहाबाद में यह क्षमता होती तो एक भाषा और एक मजहब वाले अरब में 20 देश नहीं बनते।
संगम वाले देश में तो दर्जनों मत-मतांतरों और भाषाओं के बावजूद देश एक है ।
Sumant Bhattacharya और
Tribhuwan  जी ,
ई बतिया कुल बद्दू लोगन के कऊन समझाई?
मूरख के समुझाई कै ज्ञान गाँठ खुल जाए!
हरि ओम! हरिओम!

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