Sunday, November 22, 2015

तो भइया, आॅल इज वेल!


दोस्तों, किसी की भी डिग्री पर जाना भारतीय संस्कृति की शिक्षात्मक और सभ्यतागत क्षमताओं की अवमानना है, चाहे बहस डिग्री होने की हो या न होने की हो।
मैकाले शिक्षा पद्धति में पारंगत लोगों में ज्यादातर मानसिक गुलामी के शिकार हैं , इसलिए गाँवों में कहावत है:
जे जेतना पढ़ुआ उ ओतना भढ़ुआ!

भगवान का लाख-लाख शुक्र है कि बहुत सारे लोग यहाँ यूनिवर्सिटी -कालेज नहीं गए,  नहीं तो 'अनपढ़' और कम पढ़े-लिखे लोगों की मानसिक स्वतंत्रता और मौलिक खोजों से देश वंचित रह जाता।
डा मनमोहन सिंह एक साल में (2009-10) में 49 बार विदेश गए, ज्यादा खर्चा किया और विकसित देशों के राग अलापे फिर भी '#जंगल_में_मोर_नाचा_किसने_देखा'?
मोदी ने #आॅक्सफोर्ड से पढ़े डा मनमोहनसिंह से सिर्फ 6-7 ज्यादा यात्राएँ कीं और मोदी-विरोधी कहते कि वे विदेश में ही रहते हैं बिना यह बताये कि उनकी यात्राओं में शनिवार-रविवार भी शामिल है ।

तो भइया, आॅल इज वेल।दिमाग खुला हो तो जो कभी स्कूल न जाए वह भी कमाल कर दे नहीं तो 'अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा'।
मतबल ये कि तेजस्वी -तेजस यादव से लेकर राहुल-सोनिया-स्मृति ईरानी-मोदी कोई भी हों, बिल्ला के बजाय कर्म पर ध्यान दिया जाए नहीं तो इस #गणतंत्र में तो एक #महारानी और एक उनके #राजकुमार हैं बाकी तो 'सब धन बाईस पसेरी' है ही।हरि बोल, हरि बोल!

#मंत्रियों_की_डिग्री #नेताओं_की_डिग्री #डिग्री_का_सवाल
#तेजस्वी_यादव #तेजस_यादव #मोदी #मनमोहन_सिंह #सोनिया #राहुल #स्मृति_ईरानी #अंधेर_नगरी_चौपट_राजा
#सब_धन_बाईस_पसेरी

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