Sunday, December 25, 2016

फिल्म दंगल के बहाने मोदी का मंगल-गान!

बड़े साहबज़ादे ने 'दंगल' के लिए ऑनलाइन टिकट-आदेश भेजा तो बाकी लोगों के साथ मैंने भी बड़ेदिन पर फिल्म देख ली।
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इस फिल्म को देखते हुये एक मिनट के लिये भी मोदी और देश का आभिजात्य वर्ग (भाजपा समेत विपक्ष, नौकरशाही, बुद्धिजीवी तबका )मेरी आँखों से ओझल नहीं हुये। सो कैसे?
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फिल्म का नायक महावीर सिंह फोगट माने मोदी,
गाँव घर के लोग मतलब देश के लोग,
फोगट ने बेटी गीता को देश के लिये कुश्ती में स्वर्णपदक दिलाने की ठान ली है मतलब कालेधन-भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई जिसका एक हथियार है नोटबंदी,
स्पोर्ट्स अकादेमी का कोच और निचले स्तर तक उसके लोग मतलब भ्रष्टाचार में लिप्त राजनैतिक-बौद्धिक-नौकरशाही तंत्र।
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जैसे लाख बहकावे एवं सामाजिक-मनोवैज्ञानिक-आर्थिक चुनौतियों के बजवजूद गाँव-घर के लोग अंततः फोगट के साथ खड़े हैं, वैसे ही मोदी के साथ पूरा देश खड़ा है...
लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में व्यवस्था से ऊपर से लेकर नीचे तक जुड़े लोग आज मोदी के खिलाफ हैं...जैसे स्पोर्स्ट्स अकादेमी का कोच जब सब जगह से फेल हो जाता है तो फोगट को धोखे से एक सूनसान कमरे में बंद करवा देता है ताकि दंगल लड़ते वक़्त जब गीता अपने बाप को न देखे तो वह मनोवैज्ञानिक रूप से टूट जाए... लेकिन पूर्व नेशनल कुश्ती चैंपियन फोगट ने अपनी बेटी को तैरना सिखाते वक़्त एक बार कहा था:
हर वक़्त बाप तुम्हारे साथ नहीं होगा, तुम्हें ख़ुद ही संघर्ष करके बाहर निकलना होगा... और मैच से पहले बेटी जब अपने कोच बाप से रणनीति पूछने गई तो उसने पूरी सिद्दत से कहा: यह याद रखो कि तुम देश के लिए खेल रही हो, लाखों लड़कियों के लिये मिसाल बननेवाली हो और मिसालें भूली नहीं जातीं।
क्या मोदी ने देश की जनता को तैयार नहीं कर दिया है हर मनोवैज्ञानिक लड़ाई में विजयी होने के लिए?
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सन्देश साफ है: निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर सोचते ही सारा तंत्र आपके खिलाफ खड़ा हो जाएगा लेकिन अंततः खुद पर भरोसा और आम लोगों का भरोसा ही  काम आएगा।
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आप ही बताइये भक्त के सिवा और किसकी औकात है दंगल के बहाने मोदी-मंगल गान की!

नोट:
1. तीन घंटे की इस फिल्म का एक सेकण्ड भी बेकार नहीं है। कहानी, गाने, निर्देशन, कैमरा, सेट डिज़ाइन, लोकेशन, कॉस्ट्यूम, संगीत, पात्रों के अभिनय कुछ भी ऐसा नहीं जिस पर आमिर ख़ान की छाप न हो। तब भी यह फिल्म 75% आमिर ख़ान की एक्टिंग ही है और वह भी लाजवाब। आमिर ऐसी दस फिल्में बनायें और उनकी पत्नी किरण राव हमलोगों को हमारी 'असहिष्णुता' की याद दिलाती रहें, हमें मंज़ूर हैं। गाँव में एक कहावत है:
दुधारू गाय के लातो भली!
2. फिल्म के शुरू और आख़िरी दोनों बार राष्ट्रगान 'जनगणमन' के लिये बच्चों के नेतृत्व में खड़ा होना और गान के सुर में ओठ फड़फड़ाना कहीं अंदर तक धँस गया। लगा हम भले ही अगली पीढ़ी को जागृत भारत न दे पाए हों लेकिन देश अब अपने जागृत युवक-युवतियों के हाथों में सुरक्षित है।

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25।22।16

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