Friday, December 30, 2016

टीवी-अख़बार: 'अँधा बाँटे रेवड़ी फिर- फिर खुद को दे'

टीवी-अख़बार वालों को कौन बताये कि इनके "चाँद का मुँह" टेढ़ा हो गया है!
सोशल मीडिया में तो 'खुल्लम खेल फ़र्रुखाबादी' चलता है!!

अख़बार-टीवी ने अपने-अपने तुलसी और सूर बनाये, मीर और ग़ालिब बनाये और एक दौर ऐसा आया कि उनकी स्थिति ऐसी हो गई जैसे 'अँधा बाँटे रेवड़ी फिर- फिर खुद को दे'।
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फिर आया इंटरनेट, मोबाइल और सोशल मीडिया। रियल टाइम में सवाल पूछने और सुनने-सुनाने का युग।आज 100 करोड़ से ज्यादा मोबाइल कनेक्शन हैं, 35 करोड़  स्मार्टफोन हैं, 50 करोड़ लोग ऑनलाइन हैं और इन लोगों ने हिन्दुस्तान ही नहीं बल्कि दुनियाभर के
भारत-वंशियों की एक चौपाल-सी बना दी है।
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इस चौपाल के गप्प-सर्राके 24x7 चलते रहते हैं और इनके चर्चों ने टीवी-अख़बारों के मीर-ग़ालिबों और सूर-तुलसियों को उनकी औक़ात बता दी है। अब इन टीवी-अख़बार वालों को कौन बताये कि इनके "चाँद का मुँह" टेढ़ा हो गया है क्योंकि अब सौंदर्य के प्रतिमान बदल गए हैं! 'दृष्टि बदलते ही दृश्य बदल जाते हैं'।
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खैर, आपको वे लोग आजकल स्यापा और रुदाली करते दिखते हैं कि नहीं? दिख जाएँ तो अदब में कोई कमी नहीं  पर बौद्धिक धुलाई भी मुसलसल चलती रहे। यह सफाई अभियान का दौर है, है कि नहीं?
भई, खुल्लम खेल फ़र्रुखाबादी। और क्या!

#अख़बार #टीवी #सोशल_मीडिया
#Newspapers #TV #SocialMedia

28।12।16

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