Friday, December 30, 2016

अब आप ही बताइये कि आपका इतिहास कैसा है?

अब आप ही बताइये कि आपका इतिहास कैसा है?

एक बात तो साफ है कि किसी भी देश के इतिहास को अगर सिर्फ इतिहासकारों के भरोसे छोड़ा गया तो उसका वही हाल होगा जो भारत का हुआ:
विश्वविद्यालयों में आत्म-घृणा का गौरवपूर्ण शोधपाठ।

असली इतिहास तो
जनता के वर्तमान का हमक़दम होता है,
हमसफ़र होता है,
उनकी जुबान पर होता है,
उनके सुख-दुःख के गीतों में होता है,
उनकी जीत-हार की गाथाओं और काव्यों में होता है
और
जो उन्हें वही सुकून देता है जो शाम को अपने घोंसलों में पंछी पाते हैं
या
फिर माँ की गोद में-बाप के कंधे पर उनके बच्चे।

पर उनका क्या जिनके पूर्वज बर्बर हों,
आततायी हों,
नरसंहारी-बलात्कारी-मक्कार-फरेबी-लुटेरे हों?

वे तो इतिहास को मृत घोषित कर देंगे
या
फिर उन सबको बर्बर साबित कर देंगे
जिनको उन्होंने अपनी बर्बरता का शिकार बनाया।

तो इतिहास झूठा है
अगर वह माँ-दादी-नानी की लोरी नहीं है,
इतिहास फरेब है
अगर वह बाप-दादा-नाना का कंधा नहीं है,
इतिहास अफ़ीम-शंखिया-धतूर है
अगर वह जीवन में उमंग नहीं भरता,
इतिहास दुश्मन का एजेंट है
अगर वह अपनों को बाँटने के नित नये-नये तरीके ढूँढ़ लाता है,
इतिहास महज एक विषकन्या है
अगर उसके पहलू में जाकर आपको आनंद नहीं मिलता...

अब आप ही बताइये कि आपका इतिहास कैसा है?

भारत के इतिहास के साथ इतनी छेड़छाड़ हुई है कि कथा-पुराण और मिथक ज्यादा विश्वसनीय लगते हैं। यूँ कहिये कि लगते नहीं बल्कि हैं।
पिछले 1000 हज़ार सालों की सच्चाई या तो इस्लामी हमलावरों के दरबारी इतिहासकारों, ग़ाज़ी की पदवी पाने के लिए ख़लीफ़ा को लिखे आग्रह-पत्रों या फिर चीनी-फ़्रांसिसी यात्रियों  और 1757-1947 के दौरान भारत आये ग़ैर-अंग्रेज़ विद्वानों(खासकर अमेरिकी) के लेखन से पता चलती है।

लेकिन जेएनयू-दिवि-अलीगढ़ विवि आदि में इन स्रोतों को या तो इंट्री नहीं मिलती या फिर ग़लत सन्दर्भ में उद्धृत कर दिया जाता है।किसी तरह यह साबित होना चाहिये कि भारत तो बस गुलाम होने के लिये ही बना था और जब तक गुलाम नहीं हुआ था तबतक अंधकार युग में रह रहा था!

इतना प्रेम है देश से इन इतिहासकारों का कि अन्धकारयुग यानी प्राचीन भारत पर तथ्यगत चर्चा से भी घबड़ाते हैं! इसी अंधकार युग में वेद-उपनिषद्-रामायण-महाभारत-अष्टाध्यायी-चरक संहिता आदि जो रचे गए!!


नोट:
1. गलती से कुछ लोग छेड़ू इतिहासकारों को चारण या भाँट कह देते हैं। घूम आइये राजस्थान और पता चले कि किसी चारण ने अपने आश्रयदाता की हौसला अफजाई न की हो तो बताइये। चारण और भाँट तथ्यों को आगे-पीछे करते हैं, जीवन-सत्य को नहीं।
2. जेएनयू में "भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशाल्लाह इंशाल्लाह" के नारे इसलिए लगे कि इसके बीज जेएनयू की स्थापना के समय ही डाल दिए गए थे जब काँग्रेस और मुस्लिम लीग में इस शर्त पर समझौता हुआ था आज़ादी की लड़ाई में लीग की भूमिका पर पर्दादारी की जाए। बस लोकतांत्रिक भारत में इतिहास लेखन को संस्थागत रूप से पार्टीहित की बलि चढ़ा दिया गया।
30.12.16

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