साल भर पहले आज के दिन (23.12.16)
साल भर पहले आज के दिन (23.12.16)
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अपराध की प्रकृति से अपराधी की सजा तय होनी चाहिए न कि उम्र से।अगर 16 साल का व्यक्ति जघन्य तरीके से बलात्कार कर सकता है तो वह नाबालिग कहाँ रहा?
इसका सबसे ज्यादा लाभ उठाएँगे आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देनेवाले जब वे तय उम्र से कुछ महीने कम उम्र वालों से संगीन अपराध करवायेंगे ।
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इसका विरोध कर रहे अफ़ज़लप्रेमी गैंग पर बहस के बजाए मुद्दे की गंभीरता पर बहस होनी चाहिए । ये सब बुद्धिवंचक हैं जो अपनी बुद्धि का उपयोग देश को मानसिक रूप से गुलाम बनाए रखने और बरगलाने के लिए करते हैं। ये सिर्फ तन से भारतीय हैं , मन से हैं पक्के काले अंग्रेज़।
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अपराधी के लिए उम्र-सीमा समय, समाज और संचार तकनीक सापेक्ष होनी चाहिए और व्यापक दृष्टि रखते हुए इसे पूरी तरह न्यायालय पर छोड़ देना चाहिए।आतंकवादी गतिविधियों के मद्देनजर यह जरूरी है।
हमारी न्यायालय प्रणाली बिना अकल के नकल का वैसे ही उदाहरण है जैसे शिक्षा व्यवस्था।
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भला हो सोशल मीडिया का जो अंग्रेज़ों के अलावा भी अब दूसरों को समझदार मानने में उतनी दिक्कत नहीं होती जितनी पहले होती थी क्योंकि अंग्रेज़ों के स्वार्थी, धूर्त, झूठे, मक्कार, और नरसंहारी होने के पर्याप्त प्रमाण मिलते रहते है।
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किसी सेकुलर -लिबरल-वामी आत्मा को आपत्ति हो तो उसे कृपया साहसपूर्वक यहाँ दर्ज करे।
वैसे बुद्धिविलास के लिए बदनाम इस ब्रिगेड में कोई तो बुद्धिवीर होगा जो अपनी मानसिक गुलामी की बेरियाँ तोड़ सच का सामना करेगा।
इसमें भी अगर ज्यादातर लोग बुद्धिवंचक निकले तो इसे देश का दुर्भाग्य ही कहेंगे।
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नाबालिग अपराधी को लेकर भारत का कानून यूरोपीय जरूरत की नकल लगता है।एक तरफ तो यूरोपीय दंपति बच्चे पैदा करने और पालने का 'झंझट' मोल नहीं लेना चाहते तो दूसरी तरफ अपनी आबादी को भी विलुप्त होने से बचाना चाहते हैं।
पहली चाहत टूटे हुए परिवार और आवारा-अपराधी बच्चे का कारण है और दूसरी चाहत इन अपराधी बच्चों को दंड से बचाने का।
यह बूढ़े होती आबादी का लक्षण है जिसे एक युवा आबादी वाले देश के नक्काल हुक्मरानों ने ओढ़ लिया है।
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भारत में न बच्चे के लालन-पालन को झंझट मानते हैं और न ही यहाँ आबादी के विलुप्त होने का संकट है। हमारे शास्त्रों में कहा गया है:
लालयेत पंच वर्षाणि दश वर्षाणि ताडयेत।
प्राप्तेषु षोड्से वर्षे पुत्रं मित्रमिवाचरेत ।।
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एक तरफ तो हम कहते हैं कि हमारी आबादी का 75 प्रतिशत युवा हैं और दूसरी तरफ उन देशों के बाल-कानूनों की नकल कर रहे हैं कि जहाँ की बहुसंख्य आबादी बुजुर्गों की श्रेणी में है!
ऐसी ही मानसिकता पर क्षुब्ध होकर प्रसिद्ध साहित्यकार आक्टेवियो पाज़ ने कहा था कि नक्काली में भारत के बुद्धिजीवी बेजोड़ हैं ।
#बुद्धिविलासी #बुद्धिवीर #बुद्धिवंचक
(23.12.15 की एक पोस्ट का परिवर्द्धित रूप।)
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अपराध की प्रकृति से अपराधी की सजा तय होनी चाहिए न कि उम्र से।अगर 16 साल का व्यक्ति जघन्य तरीके से बलात्कार कर सकता है तो वह नाबालिग कहाँ रहा?
इसका सबसे ज्यादा लाभ उठाएँगे आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देनेवाले जब वे तय उम्र से कुछ महीने कम उम्र वालों से संगीन अपराध करवायेंगे ।
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इसका विरोध कर रहे अफ़ज़लप्रेमी गैंग पर बहस के बजाए मुद्दे की गंभीरता पर बहस होनी चाहिए । ये सब बुद्धिवंचक हैं जो अपनी बुद्धि का उपयोग देश को मानसिक रूप से गुलाम बनाए रखने और बरगलाने के लिए करते हैं। ये सिर्फ तन से भारतीय हैं , मन से हैं पक्के काले अंग्रेज़।
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अपराधी के लिए उम्र-सीमा समय, समाज और संचार तकनीक सापेक्ष होनी चाहिए और व्यापक दृष्टि रखते हुए इसे पूरी तरह न्यायालय पर छोड़ देना चाहिए।आतंकवादी गतिविधियों के मद्देनजर यह जरूरी है।
हमारी न्यायालय प्रणाली बिना अकल के नकल का वैसे ही उदाहरण है जैसे शिक्षा व्यवस्था।
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भला हो सोशल मीडिया का जो अंग्रेज़ों के अलावा भी अब दूसरों को समझदार मानने में उतनी दिक्कत नहीं होती जितनी पहले होती थी क्योंकि अंग्रेज़ों के स्वार्थी, धूर्त, झूठे, मक्कार, और नरसंहारी होने के पर्याप्त प्रमाण मिलते रहते है।
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किसी सेकुलर -लिबरल-वामी आत्मा को आपत्ति हो तो उसे कृपया साहसपूर्वक यहाँ दर्ज करे।
वैसे बुद्धिविलास के लिए बदनाम इस ब्रिगेड में कोई तो बुद्धिवीर होगा जो अपनी मानसिक गुलामी की बेरियाँ तोड़ सच का सामना करेगा।
इसमें भी अगर ज्यादातर लोग बुद्धिवंचक निकले तो इसे देश का दुर्भाग्य ही कहेंगे।
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नाबालिग अपराधी को लेकर भारत का कानून यूरोपीय जरूरत की नकल लगता है।एक तरफ तो यूरोपीय दंपति बच्चे पैदा करने और पालने का 'झंझट' मोल नहीं लेना चाहते तो दूसरी तरफ अपनी आबादी को भी विलुप्त होने से बचाना चाहते हैं।
पहली चाहत टूटे हुए परिवार और आवारा-अपराधी बच्चे का कारण है और दूसरी चाहत इन अपराधी बच्चों को दंड से बचाने का।
यह बूढ़े होती आबादी का लक्षण है जिसे एक युवा आबादी वाले देश के नक्काल हुक्मरानों ने ओढ़ लिया है।
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भारत में न बच्चे के लालन-पालन को झंझट मानते हैं और न ही यहाँ आबादी के विलुप्त होने का संकट है। हमारे शास्त्रों में कहा गया है:
लालयेत पंच वर्षाणि दश वर्षाणि ताडयेत।
प्राप्तेषु षोड्से वर्षे पुत्रं मित्रमिवाचरेत ।।
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एक तरफ तो हम कहते हैं कि हमारी आबादी का 75 प्रतिशत युवा हैं और दूसरी तरफ उन देशों के बाल-कानूनों की नकल कर रहे हैं कि जहाँ की बहुसंख्य आबादी बुजुर्गों की श्रेणी में है!
ऐसी ही मानसिकता पर क्षुब्ध होकर प्रसिद्ध साहित्यकार आक्टेवियो पाज़ ने कहा था कि नक्काली में भारत के बुद्धिजीवी बेजोड़ हैं ।
#बुद्धिविलासी #बुद्धिवीर #बुद्धिवंचक
(23.12.15 की एक पोस्ट का परिवर्द्धित रूप।)
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