भगवान वही जो इंसान के काम आए
भगवान वही जो इंसान के काम आए
■ इंसान ने अपने भले के लिए ही भगवान का आविष्कार किया है। रोटी, कपड़ा और मकान के बाद सबसे महत्वपूर्ण जरूरत है भगवान।सही मायने में वह रोटी-कपड़ा-मकान में भी घुसा हुआ है क्योंकि वह इंसान की मनोवैज्ञानिक जरूरत को पूरा करनेवाला आविष्कार है।
■ आविष्कृत चीजें नैसर्गिक नहीं होतीं बल्कि पैदा की जाती हैं और उनमें लगातार परिष्कार होता रहता है।
जैसे कार या हवाई जहाज के मॉडल में पिछले 100 सालों में अनेक परिवर्तन हुए हैं और होते रहेंगे, उसी तरह भगवान की अवधारणा में भी लगातार परिष्कार होते रहे हैं और होते रहेंगे।
■ इन्द्र, अग्नि, वरुण, ब्रह्मा आदि की हैसियत आज वही नहीं है जो ऋग्वेदिक दौर में थी।शंकर,राम , कृष्ण न सिर्फ अवधारणात्मक बल्कि अपने रूपाकार की दृष्टि से भी पहले के देवताओं से ज्यादा परिष्कृत (Innovative, Sophisticated) हैं और आज की सभ्यता की जरूरतों के हिसाब से फिट बैठते हैं।
■ लेकिन जिन समाजों ने अपने आविष्कृत भगवान में उत्तरोत्तर परिष्कार से इनकार कर दिया वे मार-मराकर मिट जाने के लिये अभिशप्त हैं। परिष्कार से इनकार के कारण क्रूसेड हुए, पिछले 1400 सालों में इस्लाम के नाम पर 27 करोड़ लोग मारे जा चुके हैं और यह क्रम जारी है। इंसान की जरूरत के अनुसार कपड़े की कटिंग के बजाय कपड़े के आकार और डिज़ाइन के हिसाब से इंसान की 'कटिंग' का यह उदाहरण है।
■ भगवान के नाम पर सनातन में हिंसा की आशंका न्यूनतम है क्योंकि संख्या (33 कोटि) से लेकर अवधारणा और रूपाकार की परिकल्पना में परिष्कार की वैसी ही सर्जनात्मक गुंजाइश है जैसे कार-हवाई जहाज के मॉडल और मशीन में।
■ भगवान की यह अवधारणा सनातन में लोकतंत्र को सहज ग्राह्य बनाती है और पश्चिमी सभ्यता की तरह इसे सेकुलर (भगवान और राजसत्ता का विलगाव) होने की जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि पश्चिमी सभ्यता में भगवान की अवधारणा परिष्कार के खिलाफ होने के कारण लोकतंत्र के भी खिलाफ थी।
■ 56 से अधिक इस्लामी देशों में सिर्फ दो-तीन में लोकतंत्र होने के पीछे भी भगवान की अवधारणा का परिष्कार-विरोधी होना ही है। चूँकि परिष्कार के बिना जीना सहज नहीं है इसलिए 150 करोड़ मुसलमानों के लिए यह सपना भी जरूरी है कि वे शेष 600 करोड़ गैरमुसलमानों को मुसलमान बनायेंगे यानी इंसान की जरूरत के हिसाब से भगवान को परिष्कृत करने के बजाय इंसान में ही परिष्कार करेंगे जिसके लिए जेहाद जरूरी है।
■ पूरी दुनिया से मुस्लिम युवाओं का आईएसआईएस में शामिल होने के लिए इराक़-सीरिया के लिए कूच करना या फिर "लोन वुल्फ रणनीति" (जैसा कि फ्राँस के नीस शहर में हुआ) के तहत अन्य(जो मुसलमान नहीं है या जो इस्लामी देश का नागरिक नहीं है) को गर्व के साथ मौत के घाट उतारना भी इसी अपरिवर्तनीय भगवान की अवधारणा के कारण संभव होता है।
9।10
■ इंसान ने अपने भले के लिए ही भगवान का आविष्कार किया है। रोटी, कपड़ा और मकान के बाद सबसे महत्वपूर्ण जरूरत है भगवान।सही मायने में वह रोटी-कपड़ा-मकान में भी घुसा हुआ है क्योंकि वह इंसान की मनोवैज्ञानिक जरूरत को पूरा करनेवाला आविष्कार है।
■ आविष्कृत चीजें नैसर्गिक नहीं होतीं बल्कि पैदा की जाती हैं और उनमें लगातार परिष्कार होता रहता है।
जैसे कार या हवाई जहाज के मॉडल में पिछले 100 सालों में अनेक परिवर्तन हुए हैं और होते रहेंगे, उसी तरह भगवान की अवधारणा में भी लगातार परिष्कार होते रहे हैं और होते रहेंगे।
■ इन्द्र, अग्नि, वरुण, ब्रह्मा आदि की हैसियत आज वही नहीं है जो ऋग्वेदिक दौर में थी।शंकर,राम , कृष्ण न सिर्फ अवधारणात्मक बल्कि अपने रूपाकार की दृष्टि से भी पहले के देवताओं से ज्यादा परिष्कृत (Innovative, Sophisticated) हैं और आज की सभ्यता की जरूरतों के हिसाब से फिट बैठते हैं।
■ लेकिन जिन समाजों ने अपने आविष्कृत भगवान में उत्तरोत्तर परिष्कार से इनकार कर दिया वे मार-मराकर मिट जाने के लिये अभिशप्त हैं। परिष्कार से इनकार के कारण क्रूसेड हुए, पिछले 1400 सालों में इस्लाम के नाम पर 27 करोड़ लोग मारे जा चुके हैं और यह क्रम जारी है। इंसान की जरूरत के अनुसार कपड़े की कटिंग के बजाय कपड़े के आकार और डिज़ाइन के हिसाब से इंसान की 'कटिंग' का यह उदाहरण है।
■ भगवान के नाम पर सनातन में हिंसा की आशंका न्यूनतम है क्योंकि संख्या (33 कोटि) से लेकर अवधारणा और रूपाकार की परिकल्पना में परिष्कार की वैसी ही सर्जनात्मक गुंजाइश है जैसे कार-हवाई जहाज के मॉडल और मशीन में।
■ भगवान की यह अवधारणा सनातन में लोकतंत्र को सहज ग्राह्य बनाती है और पश्चिमी सभ्यता की तरह इसे सेकुलर (भगवान और राजसत्ता का विलगाव) होने की जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि पश्चिमी सभ्यता में भगवान की अवधारणा परिष्कार के खिलाफ होने के कारण लोकतंत्र के भी खिलाफ थी।
■ 56 से अधिक इस्लामी देशों में सिर्फ दो-तीन में लोकतंत्र होने के पीछे भी भगवान की अवधारणा का परिष्कार-विरोधी होना ही है। चूँकि परिष्कार के बिना जीना सहज नहीं है इसलिए 150 करोड़ मुसलमानों के लिए यह सपना भी जरूरी है कि वे शेष 600 करोड़ गैरमुसलमानों को मुसलमान बनायेंगे यानी इंसान की जरूरत के हिसाब से भगवान को परिष्कृत करने के बजाय इंसान में ही परिष्कार करेंगे जिसके लिए जेहाद जरूरी है।
■ पूरी दुनिया से मुस्लिम युवाओं का आईएसआईएस में शामिल होने के लिए इराक़-सीरिया के लिए कूच करना या फिर "लोन वुल्फ रणनीति" (जैसा कि फ्राँस के नीस शहर में हुआ) के तहत अन्य(जो मुसलमान नहीं है या जो इस्लामी देश का नागरिक नहीं है) को गर्व के साथ मौत के घाट उतारना भी इसी अपरिवर्तनीय भगवान की अवधारणा के कारण संभव होता है।
9।10
0 Comments:
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home