Thursday, December 22, 2016

गाँधी का "हे राम" बनाम मोदी का "जय श्रीराम"

गाँधी का "हे राम" बनाम मोदी का "जय श्रीराम"

गाँधी जी मरे तो उनकी जुबान पर 'हे राम' आया
जब वे जिन्दा थे तब भी क्या ऐसे ही कराहते हुए 'हे राम' कहते रहे होंगे? क्या उन्होंने कभी 'जय श्रीराम' नहीं कहा और 'हे राम' कहने के सही अवसर (मृत्यु)के लिये तरसते रहे ? क्या उन्हें जय श्रीराम से एलर्जी थी?

वे कौन लोग हैं जिन्हें सिर्फ मृत्युपूर्व के त्राहिमाम-सूचक 'हे राम' ही पसंद हैं, जीवन में संघर्ष, सम्मान, विजय और उत्सव के प्रतीक 'जय श्रीराम' नहीं? कहीं ये उन लोगों की मानस संतानें तो नहींं जो गाँधी के 1942 के "भारत छोड़ो आन्दोलन" के "करो या मरो" से चिढ़े हुए थे?

असल में "करो या मरो" गाँधी जी का 'जय श्रीराम' ही था जिस कारण अंग्रेज़ों-सत्तालोलुप कांग्रेसियों-अंग्रेज़भक्त वामियों ने गोडशे के कंधे का इस्तेमाल कर बापू को अपने रास्ते से हटाने में सफलता पाई। लेकिन गाँधी के विचार और आत्मा का हनन वे तब से करते आ रहे हैं। इसी दिशा में एक साज़िशी कदम था "करो या मरो" के सिंहनाद की जगह "हे राम" के आर्तनाद को गाँधी की समाधी पर चस्पाँ करना।

लेकिन गाँधी कबतक चुप बैठते! उन्हें अहिंसा से भी ज्यादा प्यारा था सत्य चाहे वह कितना भी क्रूर क्यों न हो। उन्होंने '1947-48' '1965' '1971' , '1999', '2002', 'गोधरा', 'गुजरात', 'दिल्ली', 'भागलपुर', 26/11, 'संसद', 'बाटला हाउस', 'इशरत जहाँ, 'गुरदासपुर, 'पठानकोट' 'उरी' 'कश्मीर -1990' सब पर कान देने के बाद भारत के युवाओं के कान में मानों एक मंत्र फूँक दिया है: "करो या मरो" के रास्ते से आया हुआ "हे राम" ही वरेण्य है, न कि निजी स्वार्थ, कायरता, और मानसिक ग़ुलामी के चोर दरवाज़े से आया हुआ।

तो बंधुओ, जिस तरह मर्यादा पुरुषोत्तम राम की परिकल्पना बिना धनुष-बाण के संभव नहीं है उसी प्रकार गाँधीे का "हे राम" भी "करो क्या मरो" के बिना निर्वीर्य है। रामलीला के अवसर पर मोदी की हुँकारभरे  "जय श्रीराम" और 1942 में गाँधी के लालकारभरे "करो या मरो" में कोई झगड़ा नहीं है।

'जय श्रीराम' के विरोधी असल में मानसिक ग़ुलामी की बेड़ियाँ तोड़ने को आतुर 'स्टार्टअप इंडिया' के खिलाफ हैं, 'डिजिटल इंडिया' के खिलाफ हैं, 'मेक इन इंडिया' के खिलाफ हैं, 'स्वच्छ भारत' के खिलाफ हैं, 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' के खिलाफ हैं... वे 'शाहबानो को गुजारा भत्ता' के खिलाफ हैं, देश में समान नागरिक संहिता के खिलाफ हैं, काला-धन-वापसी के खिलाफ हैं...वे पाकिस्तान परस्त हैं, वंश परस्त हैं और उनके साथ चट्टान की तरह खड़े हैं जिनके नारे हैं:
कश्मीर माँगे आज़ादी, बंगाल माँगे आज़ादी, केरल माँगे आज़ादी
*
भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशाअल्ला इंशाल्लाह
*
भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी जंग रहेगी
*
अफ़ज़ल हम शर्मिंदा हैं तेरे क़ातिल ज़िंदा हैं...

(श्री Sumant Bhattacharya की पोस्ट से प्रेरित।)
13.10.16

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