मैं मोदी के सख़्त ख़िलाफ़ हूँ , सोशल मीडिया के भी
मैं मोदी के सख़्त ख़िलाफ़ हूँ
मैं सोशल मीडिया के भी ख़िलाफ़ हूँ
क्योंकि यही दोनों सेकुलर इस्लाम के ख़िलाफ़ माहौल बना रहे हैं।
*
मैं दलित चिंतकों, वामपंथियों, नारीवादियों और सेकुलर-लिबरल अवार्ड-वापसी ब्रिगेड का भक्त हूँ; तुलसी -काव्य रामचरितमानस की एक लाइन 'ढोल गवाँर सूद्र् पसु नारी, ये सब तारन के अधिकारी ' के विरोध में वे आसमान सर पर उठा लेते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उसमें नारी की अवमानना हुई है। लेकिन वही लोग तीन तलाक़ और समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर मौनी बाबा बन जाते हैं।
*
क़ुरआन-शरीया-हदीस के हवाले से जो कुछ 1400 सालों से होता चला आ रहा है , कुछ तो बात होगी। इन्हीं किताबों के हवाले से आईएस, बोकोहराम, अलकायदा, तालिबान जैसे अमनपसंद ईमानवाले संगठन खड़े हो जाते हैं, छोटी बात थोड़े न है! भारत का 1947 में बँटवारा भी तो इन्हीं किताबों के हवाले से हुआ था, नापाक हिन्दुस्तान को छोड़ बहुत सारे लोग 'डायरेक्ट ऐक्शन' कर-कराके पाकिस्तान चले गए थे जो दुनिया के नक़्शे पर पहले था ही नहीं।
*
ऐसे में कौन जाये फट्टे में अपनी टाँग अड़ाने? देश में गृह-युद्ध कराने? अगले दिन से बिरयानी पार्टी और अगले साल से ईद-बकरीद पर भी लोग बुलाना बंद कर देंगे, सो अलग। विदेश यात्रा और सेमिनार से भी हाथ धोना पड़ेगा।
*
वैसे रामचरितमानस के हवाले से किसी राज्य में कोई कानून लागू है क्या? नहीं है तो क्या हुआ, यह डर तो है कि कहीं तुलसीदास की चौपाई के आधार पर संविधान में संशोधन कर भगवाधारी लोग ढोलक बजा-बजाके शूद्रों और महिलाओं की अवमानना न करने लगें!
15।10
मैं सोशल मीडिया के भी ख़िलाफ़ हूँ
क्योंकि यही दोनों सेकुलर इस्लाम के ख़िलाफ़ माहौल बना रहे हैं।
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मैं दलित चिंतकों, वामपंथियों, नारीवादियों और सेकुलर-लिबरल अवार्ड-वापसी ब्रिगेड का भक्त हूँ; तुलसी -काव्य रामचरितमानस की एक लाइन 'ढोल गवाँर सूद्र् पसु नारी, ये सब तारन के अधिकारी ' के विरोध में वे आसमान सर पर उठा लेते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उसमें नारी की अवमानना हुई है। लेकिन वही लोग तीन तलाक़ और समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर मौनी बाबा बन जाते हैं।
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क़ुरआन-शरीया-हदीस के हवाले से जो कुछ 1400 सालों से होता चला आ रहा है , कुछ तो बात होगी। इन्हीं किताबों के हवाले से आईएस, बोकोहराम, अलकायदा, तालिबान जैसे अमनपसंद ईमानवाले संगठन खड़े हो जाते हैं, छोटी बात थोड़े न है! भारत का 1947 में बँटवारा भी तो इन्हीं किताबों के हवाले से हुआ था, नापाक हिन्दुस्तान को छोड़ बहुत सारे लोग 'डायरेक्ट ऐक्शन' कर-कराके पाकिस्तान चले गए थे जो दुनिया के नक़्शे पर पहले था ही नहीं।
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ऐसे में कौन जाये फट्टे में अपनी टाँग अड़ाने? देश में गृह-युद्ध कराने? अगले दिन से बिरयानी पार्टी और अगले साल से ईद-बकरीद पर भी लोग बुलाना बंद कर देंगे, सो अलग। विदेश यात्रा और सेमिनार से भी हाथ धोना पड़ेगा।
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वैसे रामचरितमानस के हवाले से किसी राज्य में कोई कानून लागू है क्या? नहीं है तो क्या हुआ, यह डर तो है कि कहीं तुलसीदास की चौपाई के आधार पर संविधान में संशोधन कर भगवाधारी लोग ढोलक बजा-बजाके शूद्रों और महिलाओं की अवमानना न करने लगें!
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