Friday, December 16, 2016

दुःख के गर्भ में पल रहे सुख की आस

500-1000 के पुराने नोटों की बंदी से
लोग उतने ही परेशान और दुःखी हैं जितने कि किसी पुराने घाव के ऑपरेशन के समय एक मरीज...
वे वैसे  ही खुश और उत्सवधर्मी हैं जैसे कि अतुलनीय प्रसव-पीड़ा झेलती हुई माँ बनने को आतुर एक औरत...
दुःख के गर्भ में पल रहे सुख की आस में लोगों ने अपनी कल्पनाओं के घोड़े दौड़ा दिए हैं, ये सूरज के घोड़ों की मानिंद अंधेरों को सरपट रौंदते चले जा रहे हैं...
इन घोड़ों की टाप को वही महसूस कर सकता है जो कबीर की तरह 'राम का कुत्ता' हो, जो इस देश के सर्वोत्तम को जीता हो, जो स्वान्तःसुखाय देशगाथा का गायक हो...

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