सर्वाधिक हिंसा इस्लाम और साम्यवाद के नाम
भारत ही नहीं पूरी दुनिया में हिंसा को जायज़ ठहरानेवाली दो विचारधाराएँ हैं और पिछले सौ सालों में सर्वाधिक हिंसा इन्हीं के नाम पर हुई है:
इस्लाम और साम्यवाद।
लेकिन दोनों में एक की ब्रांडिंग शांति के मजहब और दूसरे की लोकशाही के रूप में की जाती है। इस्लाम की ब्रांडिंग के पीछे अरब का पैसा है और साम्यवाद के पीछे पहले सोवियत संघ का पैसा था और अब मीडिया और अकादमिक जगत का भारत-विरोधी तंत्र है।
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जेएनयू, अख़लाक़, बुरहान वानी, अवार्डवापसी, वेमुला, सर्जिकल स्ट्राइक, इशरत जहाँ और अब सिमी एनकाउंटर ऐसे दर्ज़नों मामले हैं जिनका उपरोक्त सन्दर्भ में क्वालिटेटिव और क्वांटिटेटिव अध्ययन किया जा सकता है लेकिन हमारे प्रोफेसर पहले एक्टिविस्ट हैं और अकडेमिशन बाद में। निष्कर्ष पहले निकालते हैं और डाटा संग्रह बाद में।
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इस प्रवृत्ति की शुरुआत कम्युनिस्ट पार्टियों से जुड़े प्रोफेसरों ने की जिनके लिये पार्टी हित देशहित से वैसे ही ऊपर होता है जैसे एक औसत मुसलमान के लिये पहले इस्लाम फिर मुल्क। जेएनयू इस मेल का अद्भुत उदाहरण है जहाँ से समजविज्ञानों और मानविकी का एक भी स्तरीय शोध जर्नल प्रकाशित नहीं होता लेकिन प्रसिद्ध इतिहासकार और समाजविज्ञानी पैदा हो जाते हैं जो मूलतः पैंफ्लेटबाज़ और पार्टी कार्यकर्ता हैं या उनके जैसे हैं।
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वैसे भी दार्शनिक दृष्टि से भी इस्लाम और साम्यवाद में अद्भुत समानताएं हैं। मसलन वर्गसंघर्ष -जिहाद, बुर्जुआ-काफ़िर, कम्युनिस्ट-मुसलमान, वर्गविहीन समाज-दारुस्सलाम आदि की तुलना करके देख लीजिये। इस लिहाज से साम्यवाद को निरीश्वरवादी या नास्तिक इस्लाम कह सकते हैं।
1.11.16
इस्लाम और साम्यवाद।
लेकिन दोनों में एक की ब्रांडिंग शांति के मजहब और दूसरे की लोकशाही के रूप में की जाती है। इस्लाम की ब्रांडिंग के पीछे अरब का पैसा है और साम्यवाद के पीछे पहले सोवियत संघ का पैसा था और अब मीडिया और अकादमिक जगत का भारत-विरोधी तंत्र है।
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जेएनयू, अख़लाक़, बुरहान वानी, अवार्डवापसी, वेमुला, सर्जिकल स्ट्राइक, इशरत जहाँ और अब सिमी एनकाउंटर ऐसे दर्ज़नों मामले हैं जिनका उपरोक्त सन्दर्भ में क्वालिटेटिव और क्वांटिटेटिव अध्ययन किया जा सकता है लेकिन हमारे प्रोफेसर पहले एक्टिविस्ट हैं और अकडेमिशन बाद में। निष्कर्ष पहले निकालते हैं और डाटा संग्रह बाद में।
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इस प्रवृत्ति की शुरुआत कम्युनिस्ट पार्टियों से जुड़े प्रोफेसरों ने की जिनके लिये पार्टी हित देशहित से वैसे ही ऊपर होता है जैसे एक औसत मुसलमान के लिये पहले इस्लाम फिर मुल्क। जेएनयू इस मेल का अद्भुत उदाहरण है जहाँ से समजविज्ञानों और मानविकी का एक भी स्तरीय शोध जर्नल प्रकाशित नहीं होता लेकिन प्रसिद्ध इतिहासकार और समाजविज्ञानी पैदा हो जाते हैं जो मूलतः पैंफ्लेटबाज़ और पार्टी कार्यकर्ता हैं या उनके जैसे हैं।
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वैसे भी दार्शनिक दृष्टि से भी इस्लाम और साम्यवाद में अद्भुत समानताएं हैं। मसलन वर्गसंघर्ष -जिहाद, बुर्जुआ-काफ़िर, कम्युनिस्ट-मुसलमान, वर्गविहीन समाज-दारुस्सलाम आदि की तुलना करके देख लीजिये। इस लिहाज से साम्यवाद को निरीश्वरवादी या नास्तिक इस्लाम कह सकते हैं।
1.11.16
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