जहाँ माँ ने संतान को और संतान ने माँ को निगलना अपना धर्म समझा
जहाँ माँ ने संतान को और संतान ने माँ को निगलना अपना धर्म समझा...
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अरब में तीन मजहब पैदा हुये और तीनों बर्बरता और नरसंहार में एक से बढ़कर एक। हर एक मजहब ने उस कोख को उजाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी जिसमें वह पैदा हुआ। यहूदियों को ईसाइयों ने और ईसाइयों-यहूदियों को मुसलमानों ने मिटाने के लिय ज़मीन-आसमान एक कर दिया। इतना ही नहीं, हरेक कोख ने भी अपनी संतान को वैसे ही निगलना जारी रखा जैसे कहते हैं कि साँप अपने अंडे को।
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सबसे बाद में पैदा हुआ मजहब है साम्यवाद जिसका भूगोल भले ही यूरोप हो लेकिन उसकी मानसभूमि तो अरब ही है। यहाँ तक कि भविष्य के समाज की परिकल्पना और उसकी प्राप्ति के रास्ते के मामले में तो वह इस्लाम की ही ईश्वर-विरोधी संतान(God-less progeny) लगता है।
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आपकी क्या राय है? क्यों ऐसा हुआ होगा? क्या इसका अरब की संस्कृति से कोई रिश्ता है? इसमें उसके भूगोल की भी कोई भूमिका है क्या? यहूदी और ईसाई तो नए ज़माने में लगभग ढल गए लेकिन मुसलमान और साम्यवादी दोनों नरसंहार और दमन के महत्व से अबतक चिपके हैं?
15.9.16
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अरब में तीन मजहब पैदा हुये और तीनों बर्बरता और नरसंहार में एक से बढ़कर एक। हर एक मजहब ने उस कोख को उजाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी जिसमें वह पैदा हुआ। यहूदियों को ईसाइयों ने और ईसाइयों-यहूदियों को मुसलमानों ने मिटाने के लिय ज़मीन-आसमान एक कर दिया। इतना ही नहीं, हरेक कोख ने भी अपनी संतान को वैसे ही निगलना जारी रखा जैसे कहते हैं कि साँप अपने अंडे को।
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सबसे बाद में पैदा हुआ मजहब है साम्यवाद जिसका भूगोल भले ही यूरोप हो लेकिन उसकी मानसभूमि तो अरब ही है। यहाँ तक कि भविष्य के समाज की परिकल्पना और उसकी प्राप्ति के रास्ते के मामले में तो वह इस्लाम की ही ईश्वर-विरोधी संतान(God-less progeny) लगता है।
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आपकी क्या राय है? क्यों ऐसा हुआ होगा? क्या इसका अरब की संस्कृति से कोई रिश्ता है? इसमें उसके भूगोल की भी कोई भूमिका है क्या? यहूदी और ईसाई तो नए ज़माने में लगभग ढल गए लेकिन मुसलमान और साम्यवादी दोनों नरसंहार और दमन के महत्व से अबतक चिपके हैं?
15.9.16
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