दिवाली यानी भारतीय राष्ट्रीयता का शिखर-प्रतीक
दिवाली यानी भारतीय राष्ट्रीयता का शिखर-प्रतीक
■
चौदह वर्ष के वनवास के बाद राम के अयोध्या लौटने की ख़ुशी में लोग 'हिन्दू-दिवाली' मनाते हैं। लेकिन उसी राम ने लंका का सिंहासन ठुकराने के पहले एक 'सेकुलर बात' कही थी:
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरियसि
(माँ और मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर हैं)।
■
इस अर्थ में दिवाली सिर्फ़ असत्य पर सत्य की विजय की ख़ुशी का प्रतीक नहीं है, बिछड़े हुओं अपनों से मिलन का प्रतीक नहीं है बल्कि उस जीवनमूल्य का भी प्रतीक है जो अपनी जन्मभूमि को जन्मदात्री माँ के रूप में प्रतिष्ठित करता है और उसके आगे स्वर्ग को भी तुच्छ समझता है।
■
तो क्यों न दिवाली को भारत की राष्ट्रीयता के शिखर-पुरुष राम के शिखर राष्ट्रीय वक्तव्य के रूप में भी मनायें? ऐसी राष्ट्रीयता जो पश्चिम के तर्ज़ पर दूसरी राष्ट्रीयताओं को कुचलकर नहीं बल्कि उनके सहकार से आगे बढ़ती है। पर जरूरत पड़ने पर दुष्ट-दुश्मन राष्ट्रीयता का 'रावण-वध' भी करती है।
(नोट: कृपया स्वर्ग को 72 हूरों वाली ज़न्नत से कन्फ्यूज़ न करें।)
#दिवाली #स्वर्ग #जन्मभूमि #जननी #ज़न्नत #अयोध्या #लंका_की_गद्दी #विभीषण #हिन्दू_दिवाली #सेकुलर_दिवाली #कम्युनल_राम
29.10.16
■
चौदह वर्ष के वनवास के बाद राम के अयोध्या लौटने की ख़ुशी में लोग 'हिन्दू-दिवाली' मनाते हैं। लेकिन उसी राम ने लंका का सिंहासन ठुकराने के पहले एक 'सेकुलर बात' कही थी:
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरियसि
(माँ और मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर हैं)।
■
इस अर्थ में दिवाली सिर्फ़ असत्य पर सत्य की विजय की ख़ुशी का प्रतीक नहीं है, बिछड़े हुओं अपनों से मिलन का प्रतीक नहीं है बल्कि उस जीवनमूल्य का भी प्रतीक है जो अपनी जन्मभूमि को जन्मदात्री माँ के रूप में प्रतिष्ठित करता है और उसके आगे स्वर्ग को भी तुच्छ समझता है।
■
तो क्यों न दिवाली को भारत की राष्ट्रीयता के शिखर-पुरुष राम के शिखर राष्ट्रीय वक्तव्य के रूप में भी मनायें? ऐसी राष्ट्रीयता जो पश्चिम के तर्ज़ पर दूसरी राष्ट्रीयताओं को कुचलकर नहीं बल्कि उनके सहकार से आगे बढ़ती है। पर जरूरत पड़ने पर दुष्ट-दुश्मन राष्ट्रीयता का 'रावण-वध' भी करती है।
(नोट: कृपया स्वर्ग को 72 हूरों वाली ज़न्नत से कन्फ्यूज़ न करें।)
#दिवाली #स्वर्ग #जन्मभूमि #जननी #ज़न्नत #अयोध्या #लंका_की_गद्दी #विभीषण #हिन्दू_दिवाली #सेकुलर_दिवाली #कम्युनल_राम
29.10.16
0 Comments:
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home