Sunday, December 31, 2017

तीन तलाक़: सेकुलर सवाल और कम्युनल जवाब


 29.12.17
तीन तलाक़: सेकुलर सवाल और कम्युनल जवाब
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■सवाल:
"तीन तलाक़ से तो सिर्फ मुसलमान औरतों को शायद मुक्ति मिलेगी लेकिन उन हिन्दू औरतों का क्या जिनका पति उन्हें छोड़कर भाग गया?"
■जवाब:
यह तो ऐतिहासिक महत्व का सवाल है, इसलिये इतिहास में जिन लोगों ने भी ऐसा या इससे मिलता-जुलता कुछ किया हो, उन्हें और कुछ नहीं तो नायकत्व से वंचित किया ही जा सकता है ताकि हम वैसे ही नायक चुनें जो पाकसाफ हों। वर्तमान वाले को तो असली ज़िंदा सज़ा दे सकते हैं।

●राम ने गर्भवती सीता को वनवास दे दिया...
●महात्मा बुद्ध पत्नी को सोते छोड़ घर से निकल गये... ●पैग़म्बर मुहम्मद साहेब ने अपनी एक बीमार पत्नी अमरा बिन्त यज़दी और उनकी बीमारी (कोढ़) दोनों को हराम करार दे दिया था...
● एक मरदूद ने ईसा मसीह की अच्छी-भली मुकम्मल माँ मरीयम को ईसाई सेंटों द्वारा कुँवारी घोषित किये जाने के लिए मजबूर कर दिया...उसका भी पता लगाना चाहिए ताकि उसे वक़्त की अदालत के सामने पेश किया जा सके, यह बात अलग है कि एक बच्चे की असल पहचान तो वह कोख ही होती है जिससे वह इस जहाँ में पदार्पण करता है भले जैविक पिता कोई भी क्यों न हो...

इस लिस्ट को और लंबा करना चाहिए ताकि कोई बचे नहीं, किसी के साथ अन्याय न हो...
●मसलन कार्ल मार्क्स ने अपनी पत्नी को चीट करते हुए अपनी नौकरानी से एक 'लव चाइल्ड' पैदा किया और अपने परममित्र एंगेल्स को यह जिम्मेदारी लेने के लिए राज़ी किया...

इसी तरह उन हाई प्रोफाइल पत्नियों को भी शामिल किया जा सकता है जिन्होंने अपने पतियों को छोड़ दिया...
●मीरा बाई ने अपने राणा को छोड़ कृष्ण की मूर्ति को ही अपना पति घोषित कर दिया और भूखे-नंगे भक्तों के साथ नाचती-गाती ख़ुद राजस्थान से वृन्दावन और वृन्दावन से राजस्थान डोलती रहीं...
●मथाई के संस्मरण की मानें तो इंदिरा नेहरू खान-गाँधी पर भी ऐसा ही मामला बन सकता है। 'सकता है' इसलिये कि एमओ मथाई वाली किताब प्रतिबंधित है और उससे प्रमाण जुटाना भी कहीं ग़ैर-क़ानूनी न माना जाए। वैसे कौन से माननीय कब वंश-प्रेम में दग्ध होकर क्या फैसला दे दें, कहना मुश्किल है। इसलिये इस पचड़े से पहले चरण में बचा भी जा सकता है।

●वर्तमान में सबसे चर्चित नाम प्रधानमंत्री मोदी का है जिन्होंने लगभग 45 वर्ष पहले एक नहीं दो-दो अपराध किये: पहला, पत्नी को छोड़ा और दूसरा, उस घर को भी छोड़ दिया जिसमें पैदा हुए थे और जहाँ उनकी पत्नी ब्याहकर लायी गईं थीं। इनका अपराध तो महात्मा बुद्ध के अपराध की तरह संगीन है।

वैसे चूँकि यह एक राष्ट्रीय महत्व का कार्य है, इसलिए इस पर कोई भी क़दम उठाने के पहले राष्ट्रीय विमर्श होना चाहिये ताकि संविधान के बुनियादी ढाँचे पर कोई आँच न आए।
अंत में, और कुछ नहीं तो एक ऑनलाइन जन अदालत लगाकर पत्नी-छोड़ू पतियों पर तो कार्रवाई हो ही सकती है। आख़िर क़ानून की निग़ाह में तो सब बराबर हैं!
©चन्द्रकान्त प्रसाद सिंह

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