अल्लामा इक़बाल का पुनर्पाठ जरूरी
अल्लामा इक़बाल का पुनर्पाठ जरूरी है।उनकी कविता और विचारों को जेहादी-भर्ती में बहुत कारगर पाया गया है।
जरा गौर करिये:
हो जाए अगर शाहे ख़ुरासान का ईशारा
सजदा न करूँ हिन्द की नापाक ज़मीं पर ।
वैसे Tufail Ahmad ने साफ-साफ उन्हें विश्वविद्यालयों में प्रतिबंधित करने की बात कही है।
ये हमारे सेकुलर-लिबरल-वामी अकल से इतने पैदल क्यों हैं?
सब के सब आख़िरी रोटी ही खाए रहै क्या जो फालतू के एक जेहादी को इतना सम्मान देते रहे?
इतना तो इतिहास के बकलोल को भी पता होगा कि इक़बाल मियाँ जब अंग्रेज़ों की स्काॅलरशिप पर इंग्लैंड गए तो पाकिस्तान का आइडिया देकर आ गए लेकिन शायरी में भी 'पाकिस्तान का रायता' फैला गए, इसका राज़ तो अब खुल रहा है।
ये सेकुलर-वामी-लिबरल भी न जिस पत्तल में खाते उसी में छेद करते? फिर चर्च की तरह दसियों साल बोलते कि 'पत्तल में छेद करना महाभूल थी'!
लगता है कि इन लोगों ने महाभूल के महाकुंभ आयोजन की सुपारी ले रखी है।
कोई आश्चर्य नहीं अगर वे अब तुफैल अहमद के पीछे पड़ने की महाभूल कर बैठें!
तथास्तु ।
#इक़बाल_की_पोलखोल #अल्लामा_इक़बाल #इक़बाल
#जेहादी_शायर
#EqbalExposed #JehadPoetry #Eqbal
#AllamaEqbal
27.12.16
जरा गौर करिये:
हो जाए अगर शाहे ख़ुरासान का ईशारा
सजदा न करूँ हिन्द की नापाक ज़मीं पर ।
वैसे Tufail Ahmad ने साफ-साफ उन्हें विश्वविद्यालयों में प्रतिबंधित करने की बात कही है।
ये हमारे सेकुलर-लिबरल-वामी अकल से इतने पैदल क्यों हैं?
सब के सब आख़िरी रोटी ही खाए रहै क्या जो फालतू के एक जेहादी को इतना सम्मान देते रहे?
इतना तो इतिहास के बकलोल को भी पता होगा कि इक़बाल मियाँ जब अंग्रेज़ों की स्काॅलरशिप पर इंग्लैंड गए तो पाकिस्तान का आइडिया देकर आ गए लेकिन शायरी में भी 'पाकिस्तान का रायता' फैला गए, इसका राज़ तो अब खुल रहा है।
ये सेकुलर-वामी-लिबरल भी न जिस पत्तल में खाते उसी में छेद करते? फिर चर्च की तरह दसियों साल बोलते कि 'पत्तल में छेद करना महाभूल थी'!
लगता है कि इन लोगों ने महाभूल के महाकुंभ आयोजन की सुपारी ले रखी है।
कोई आश्चर्य नहीं अगर वे अब तुफैल अहमद के पीछे पड़ने की महाभूल कर बैठें!
तथास्तु ।
#इक़बाल_की_पोलखोल #अल्लामा_इक़बाल #इक़बाल
#जेहादी_शायर
#EqbalExposed #JehadPoetry #Eqbal
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27.12.16
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