Sunday, December 31, 2017

मनुस्मृति और शरीया में क्या अंतर है?


 28.12.17
संता: मनुस्मृति और शरीया में क्या अंतर है?
बंता: एक को लागू करने की कभी मजबूरी नहीं
थी जबकि दूसरे की आलोचना भी हराम है।
संता: फिर लोग मनुस्मृति को जलाते क्यों हैं?
बंता: इससे वोट मिलता है, सत्ता मिलती है और कोई ख़तरा भी नहीं है।
संता: पर शरीया और मनुस्मृति पर बौद्धिक बहस तो हो ही सकती है।
बंता: क्यों नहीं?
संता: लेकिन बहस होती कहाँ है!
बंता: इस देश के पढ़े-लिखे लोग राजनीतिक दलों के लाउडस्पीकर जो हैं।
संता: लाउडस्पीकर बने रहने के क्या फ़ायदे हैं?
बंता: अध्ययन-चिंतन-मनन द्वारा देश की समस्याओं के स्वतंत्र और निर्भीक समाधान देने से मुक्ति मिल जाती है।
संता: पर इससे क्या लाभ?
बंता: इस तरह चुप रहने या रोबोट की तरह बोलने से आजीविका की गारंटी हो जाती है।
संता: फिर ये पढ़ुआ लोग बुद्धिजीवी कैसे हो गए?
बंता: वे बिल्कुल बुद्धिजीवी हैं।
संता: मतलब?
बंता: भारतभूमि पर जन्मे किसी भी धर्म की जितनी भर्त्सना करो, उतने ही भीषण बुद्धिजीवी माने जाओगे। परन्तु जैसे ही किसी मजहब या रिलिजन पर मुँह खोला नहीं कि घोर कम्युनल का सर्टिफिकेट मिल जावेगा।
संता: बात पल्ले नहीं पड़ी।
बंता: आप वेद-उपनिषद्- मनुस्मृति की चाहे जितनी खिल्ली उड़ाओ पर क़ुरआन-हदीस-शरीया पर आज की जरुरत के हिसाब से कुछ कहा नहीं कि आप पोंगापंथी, इस्लाम-विरोधी, मोदीभक्त और संघी करार दिए जाएँगे।
संता: लेकिन हमारा देश तो कहते हैं कि सेकुलर है।
बंता: एकदम सेकुलर है लेकिन इसका अर्थ है वोटबैंक के लिए अल्पसंख्यक तुष्टिकरण और बहुसंख्यक की अवमानना।
संता: लेकिन कबतक ऐसा चलेगा?
बंता: जबतक अल्पसंख्यक अपनी आसमानी किताबों के लिए जीना छोड़कर ख़ुद के लिए जीना नहीं शुरू कर देता।
संता: और बहुसंख्यक का कोई रोल नहीं?
बंता: है न, उसे अपनी चुप्पी तोड़ सभी नागरिकों की बराबरी के लिए सिंहनाद करना होगा।
संता: इससे होगा क्या?
बंता: तब हम आसमानी किताबों के बजाये ख़ुद की बनायी किताब संविधान के मुँहताज होंगे जिसमें जैसी जरुरत हो वैसी तब्दीली कर सकेंगे।
संता: फिर तो कोई मनुस्मृति या कोई किताब नहीं जलायेगा?
बंता: जलाने को तो जला ही सकता है लेकिन किसी भी किताब का असल विरोध तो दूसरी किताब लिखकर ही किया जा सकता है।
संता: सुनते हैं कि बख़्तियार ख़िलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय की एक करोड़ पुस्तकों वाली लाइब्रेरी ही जला दी थी?
बंता: उसने विक्रमशिला विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी का भी यही हस्र किया था परंतु ऐसा करनेवाला न वह अंतिम व्यक्ति था न ही प्रथम।
संता: लेकिन ये लोग ऐसा करते ही क्यों हैं?
बंता: क्योंकि इनका मूलमंत्र है,"हम ही हम बाकी सब खतम"।
संता: पर भारत में सभी विरोधी विचारों को भी पूरा सम्मान मिलता रहा है।
बंता: इसी का तो लाभ उठाकर ये लोग लोकतंत्र का ही गला घोंटने पर आमादा हैं।
संता: इससे बचने का कोई उपाय?
बंता: यहाँ का खासकर बहुमत वोटबैंक के बजाये जिम्मेदार नागरिकों का समाज बन जाए।
©चन्द्रकान्त प्रसाद सिंह

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