Wednesday, July 1, 2015

पटना नगरी छार दिहिन अब बेदिल चले बिदेस...



तारीख़ 28 जून 2015. जामा मस्जिद दिल्ली के गेट नम्बर एक के सामने की गली 'मटिया महल' का बाज़ार. दावते इफ़्तार के बाद रौशन बाज़ार जहां के होटल सहरी तक खुले मिल जाएंगे.
यह दिल्ली 6 है. मीर की दिल्ली, ग़ालिब की दिल्ली, और जिसके दम पर लोग इस नामुराद शहर को कह बैठते हैं:

दिल्ली है दिलवालों की...

इसी दिल्ली में पटना के एक शायर आकर बसे. ईरान से बाहर और खुसरो के बाद फारसी के सबसे अज़ीम शायर जिनकी नकल करते-करते जब ग़ालिब मियाँ थक गए तो फरमाया:

तर्ज़े बेदिल में रेख़्ता कहना अस्सदुल्ला ख़ाँ क़यामत है...

और बेदिल ने भी अज़ीमावाद से विदा लेते हुए ज़फ़र की तरह रोते-बिलखते कहा होगा:

पटना नगरी छार दिहिन बेदिल चले बिदेस...

बेदिल इसी शहर में सुपुर्दे ख़ाक हुए. मटका पीर के सामने ही उनकी मज़ार है. पता नहीं ग़ालिब से क़रीब 100 बरस पहले रोजी-रोटी की तलाश में दिल्ली का रूख करनेवाले बेदिल  की रूह को यह बात कितना बेचैन करती होगी कि उनके 'देस' बिहार से करीब 50 लाख से ज़्यादा लोग उन्हीं की तरह दिल्ली में 'बिदेसिया' हो गए हैं और मुदफ़्न भी यहीं होंगे.

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