Tuesday, July 7, 2015

भारतीय मन माने क्या ?


भारतीय मनीषा के तीन आधार स्तंभ हैं:
1) एकोसद्विप्रा बहुधा वदन्ति ( सत्य एक ही है, शिक्षित लोग अपने-अपने तरीके से उसे समझते-समझाते हैं)...
(2) महाजनो एन गतः स पन्थाः( बड़॓ लोग जिस रास्ते से चले उनका अनुशरण करें ) ...
(3) अप्प दीपो भव (अपना दीपक खुद बनो)...

एकोसद्विप्रा बहुधा वदन्ति...

इसने हमें मजहबी युद्धों से बचाया । यूरोप-पश्चिम एशिया जब क्रुसेड (मजहबी युद्ध जिसे भ्रमवश धर्मयुद्ध कहा जाता है) में लिप्त थे तब दुनियाभर से मजहब के नाम पर प्रताड़ित लोग भारत में पनाह पाते थे। इससे एक कदम आगे भारत में यह भक्ति आंदोलन का दौर था जिसमें हिन्दू-मुसलमान दोनों शामिल थे ।

 महाजनो एन गतः स पन्थाः ...

इसने हमें गुरुकुल दिया, सामाजिक स्थिरता दी, छल-बल के बीच ज्ञान के महत्व को स्थापित किया । लेकिन इसने गुण-आधारित जातिप्रथा की आत्मा का हरण कर उसे जन्मना बनाने में भी अहं भूमिका अदा की और आज भी एक चुनौती है।

अप्प दीपो भव(आत्म दीपो भवः)...

यह  महात्मा बुद्ध की देन है। इसने मानवीय कल्पनाओं को नए पंख दिए, मन में बंधनों से मुक्ति की चाहत  भर दी। जन्मना जाति पर पहला बड़ा प्रहार किया और भारत को दुनिया के
श्रेष्ठतम विश्वविद्यालय दिए (नालंदा विश्वविद्यालय उसमें एक था)। इसी दौर में भारत में ज्ञान-विज्ञान की दिशा में सर्वाधिक  काम हुए ।

सवाल यह है कि आज की ज्ञान-आधारित वैश्विक अर्थव्यवस्था में बुलंदी पाने के लिए बुद्ध ज्यादा काम के हैं या बुद्ध -पूर्व की पपरंपराएँ?

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