मेरा सर गंजा है... तो क्या इसे काट कर फेंक दें?
सैकड़ों सालों से
हमलावरों के तलवे चाट-चाटकर
भारत का बुद्धिजीवी तबका
आत्म सम्मान के साथ-साथ
अपनी विरासत को भी भूल गया है।
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उसे अपनी ताकत का न अहसास है
न ही किसी और देशवासी के ज्ञान
और विवेक पर भरोसा है।
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शायद ही कोई देश होगा
जहाँ के स्कूल-कालेज के विद्यार्थी
अपनी भाषा में लिखे उत्तर को
विश्वसनीय बनाने के लिए
उनलोगों की भाषा में उद्धरण देते हों
जिन्होंने उन्हें गुलाम बनाया ।
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या फिर इस बात पर गर्व करते हों कि
उनके देश की सब चीज फालतू है...
या फिर उन्हें अपनी भाषा बिलकुल नहीं आती...
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पंडित नेहरू कितने गर्व से कहते थे:
मैं सिर्फ शरीर से भारतीय कहूँ, मन तो मेरा यूरोपीय है...
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ढ़ूढ़ लीजिए दुनियाभर में कोई देश
जहाँ का पहला प्रधानमंत्री इतना नक्काल हो...
जिसने चीनी हमले के बाद
चीन द्वारा कब्जाए एक बड़े भूभाग के बारे में
भरी संसद में एक मूर्खतापूर्ण बयान दिया हो:
...Not a blade of grass grows there.
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एक सांसद, शायद पीलू मोदी, ने कटाक्ष किया था:
मेरा सर गंजा है... तो क्या इसे काट कर फेंक दें?
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