Sunday, August 16, 2015

एक औसत हिन्दू जब ओवैसी और बुखारी को ही मुसलमानों का असली नुमाइंदा मानने लगेगा...


राज्य सत्ता अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ कोई कानून सम्मत कार्रवाई करे और अगर वह व्यक्ति #मुसलमान हुआ तो समझ लिए कि वह कार्रवाई #साम्प्रदायिक है, #इस्लाम_विरोधी है चाहे क्यों न वह व्यक्ति सैकड़ों लोगों की मौत का जिम्मेदार #याकूब_मेमन हो!
काँग्रेस-वामी आचार संहिता के अनुसार #भारत में #सेकुलर कहलाने की यही शर्त है।
कुछ और भी शर्तें हैं जैसे आधुनिक समझ रखनेवाले और हर प्रकार की बराबरी के हिमायती मुसलमान नेताओं के बरक्श जहालत, #फिरकावाराना और #दकियानूसी विचारों के पोषक नेताओं को कहीं ज्यादा अहमियत देना। जैसे डा #अब्दुल_कलाम और #आरिफ_मोहम्मद_खान जैसों की जगह #ओवैसी और #अहमद_बुखारी को आगे बढ़ाना।
ऐतिहासिक नामों में #अकबर की जगह #औरंगजेब और #मुहम्मद_गोरी के गुनगाण करना।
ले दे कर वह सब काम करना जिससे इस्लाम और मुसलमान को #आतंकवाद और #आतंकी का पर्याय मानने में एक सामान्य #हिन्दू को कोई दिक्कत न हो।लेकिन कोई पढ़ा-लिखा व्यक्ति इस  दोहरेपन की ओर इशारा करे तो उसे तुरंत कम्युनल या संघी ब्रांड कर दो अगर आपको अपना सेकुलर वाला सर्टिफिकेट बरकरार रखना है।
इस रणनीति के लाभ बड़े गुणकारी हैं। #बहुदेववादी बहुमत के मन में अंतिम पैगंबरवादी और एक ही अल्लाह वादी मुसलमानों के प्रति नफरत भरती जाएगी और मुसलमानों के मन में डर और आशंका का तिल पहाड़ बनता जाएगा। फिर इनके बीच की गहरी घाटी में वोटों की फसल लहलहा उठेगी।

जनाब #शाहिद_सिद्दीकी कहते हैं कि मुसलमानों में भय पैदा करके सेकुलर पार्टियों ने उनसे वोट रूपी #जज़िया_टैक्स वसूला है।अगर आप इसके खिलाफ हैं तो निश्चित तौर पर #कम्युनल हैं।

यहाँ तक तो ठीक है । लेकिन सिद्दीकी साहेब शायद यह भी मानते होंगे कि मुस्लिम समुदाय ने अपने अंदर आधुनिक #मध्यवर्ग को राजनीतिक इज्जत नहीं दी है क्योंकि वह #भारतीय_संविधान के राज की जगह #शरीया के राज या #निज़ामेमुस्तफा का हामी है जिसका समर्थन मध्यवर्गीय मुसलमान नहीं करेगा।
इसलिए मुसलमान मध्यवर्ग को अपने समुदाय में सामाजिक इज्जत बख्शी जाती है , राजनीतिक नेतृत्व नहीं।
#आईएसआईएस, #तालिबान, #अलक़ायदा, #बोकोहरम इसी मानसिकता के चरम उदाहरण हैं।
भारत में हिन्दुओं की बहुदेववादी उदारता के कारण अबतक ऐसा नहीं हुआ है लेकिन इंटरनेट और मोबाइल ने सबको सबकुछ सुलभ करा दिया है।इस कारण कोई आश्चर्य नहीं अगर आनेवाले दशकों में हिन्दुओं में भी वैसे लोगों की एक संगठित जमात पैदा हो जाए जो सामी मतों ( ईसाइयत, इस्लाम, मार्क्सवाद) की तर्ज पर यह मानने लगे कि 'ह ही हम, बाकी सब खतम'।
पश्चिमी दुनिया की जनसंहारी सभ्यता को तार्किक जामा पहनाने वाले चिंतक हटिंगटन यह सब देख-जानकर कितने प्रसन्न हो रहे होंगे कि 'सभ्यताओं के संघर्ष' के उनके सिद्धांत को लागू करने की जमीन वहाँ भी तैयार हो रही है जहाँ उसकी संभावना सबसे कम थी यानी हिन्दुस्तान!
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