Thursday, August 27, 2015

दलित पत्नी के रहते वे किसी सवर्ण लड़की से शादी क्यों करना चाहते हैं?



1. आरक्षण का लाभार्थी एक औसत दलित अन्य भारतीयों की तरह ही दोमुँहा होता है।जातिप्रथा का विरोध करते हुए भी जातिमुक्त समाज नहीं चाहता।

2. एक औसत पढ़ा-लिखा दलित जातिविरोध के नाम पर सिर्फ सवर्णों का विरोध करता है जातिप्रथा का नहीं क्योंकि वह खुद नव-सवर्ण बनना चाहता है ।

3. दलित अधिकारी या नेता अपनी दलित पत्नी को छोड़ या उसके रहते किसी सवर्ण लड़की से शादी क्यों करना चाहते? इसलिए कि वे नव-सवर्ण बनना चाहते।

4. ये नव-सवर्ण बने संविधान-सम्मत दलित अपने समुदाय के उत्थान में कोई रुचि नहीं रखते बल्कि सवर्णों को नव-दलित बनाकर दलितों की संख्या बढ़ाते।

5. ये नवसवर्ण पुराने सवर्णों के सभी दुर्गुणों से लैश हो बराबरी/मानवीयता की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाते, क्योंकि इनका जातिविभेद से कोई विरोध नहीं।

6. ये नवसवर्ण छोटी लाइन की जगह बड़ी लाइन खींचने के बजाए अपनी काहिली के कारण बड़ी लाइन को ही छोटा करना चाहते हैं जो कि नकारात्मक है।

7. दलितों का नवसवर्ण बनना  अपने जाति-विभेद समर्थन के कारण संविधान की मदद से  संविधान की मूल भावना की ही चोर दरवाजे से हत्या कर रहा है।

8. नव-सवर्ण को सही मानने का अर्थ है कि पुरानी जातिप्रथा और आधुनिक संविधान-पोषित #जातिवाद दोनों ही समाज की जरूरत हैं! ऐसा है क्या?

9. सवर्णों का विरोध लेकिन सवर्ण पैदा करने वाले सिस्टम का विरोध क्यों नहीं?कल को बचेखुचे सवर्ण व नवसवर्ण क्या दलितों के खिलाफ नहीं होंगे?

10. जब नवसवर्ण पुराने सवर्णों के एक हिस्से को नवअवर्ण बना देंगे तब नवअवर्ण तथा लाभ-वंचित पुराने अवर्ण मिलकर दलित-नवसवर्णों का विरोध करेंगे।

11. लेकिन यह नया गठबंधन भी जातिजनित विभेद के खिलाफ खड़ा नहीं होगा।यानी ऊपर-ऊपर जातिप्रथा का विरोध और अंदर-अंदर जातिजनित लाभों से प्रेम।

12. नवसवर्ण और नवअवर्ण दोनों ही #भारत और #इंडिया  के #दोहरेपन के अनुपम उदाहरण हैं।
यही हमारा अनआॅफिशियल  #राष्ट्रीयचरित्र  है।

13. जातपाँत के मामलेमें हम उस मलेरिया-पीड़ित काहिल की तरह हैं जो इसलिए पूरीतरह निरोग नहीं होना चाहता कि उसे बुखार के नाम पर  छुट्टी चाहिए।

14. हर छह महीने पर उसे बुखार होता है और वह ईलाज के नाम पर छुट्टी लेकर घर बैठ जाता है।
इसको कहते हैं: 'जो रोगिया को भावे, सो वैदा फरमावे'।

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