Saturday, August 22, 2015

नाग की पूजा माने क्या?

भज सेकुलरदासं भज नवरत्नम्
भज सेकुलरदासं मूढ़मते

"आज (19 अगस्त 2015) नाग पंचमी है..और हम नाग की पूजा करते हैं...
क्योंकि हम सनातनी भारतीयों के पूर्वज हमें ज्ञान दे गए हैं कि सांप के जहर से कैसे मानव जीवन को बचाया जा सकता है.....
और
सांप और सभी प्राणी कैसे इस प्रकृति चक्र के संतुलन के लिए अनिवार्य है..."
Sumant Bhattacharya  की फेसबुक वाल से।

काश यह बात किताबी मजहबवादी और सेकुलरदासी सम्प्रदाय के भक्त भी समझ पाते! अगर मानसिक गुलामी का यह आलम है कि विदेशी स्रोत पर ही विश्वास है तो टी एस एलियट की अंग्रेज़ी कविता "The Wasteland" यानी "बंजर जमीन " की अंतिम पंक्तियाँ ही पढ़ लेते जो उपनिषद् से ली गई हैं और सीधे-सीधे संस्कृत में कही गई हैं और जिनमें प्रकृति और अन्य जीव-जंतुओं से सामंजस्य स्थापित कर सर्वांगीण शांति-प्राप्ति की बात है ।

वे कहेंगे: कोई-कोई विदेशी भी साँप-सँपेरों के चक्कर में आ जाए तो थोड़े न उसकी बात मान लेंगे? भई 24 कैरेट वाला सेकुलरदास यानी मानसिक गुलाम चाहिए उन्हें ।
कोई क्या कर लेगा उनका? उन्हें दरबारी नवरतन कवि रहीम बनना है, दर दर भटकने वाला तुलसी और कबीर नहीं। धोखे से कबीर के घर पैदा हो भी गए तो वंश-डुबाऊ पूत कमाल बनना है , वंश-उज्ज्वला बेटी कमाली नहीं । हरि बोल, हरि बोल । तो अब थोड़ा गायन-बजायन यानी भजन हो भी हो जाए---
भज सेकुलरदासं भज नवरत्नम्
भज सेकुलरदासं मूढ़मते...

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