ताजमहल बनानेवाले के पास बीटेक की डिग्री थी क्या?
मेरे युवा मित्र डा सुजीत कुमार ने लिखा है
"...मुझे आपका यह पोस्ट निष्पक्ष नहीं लगा...इतिहास लेखन एक वैज्ञानिक विधि है...किसी के मन का फितूर नहीं। अगर इतिहास लेखन में इतनी ही गड़बड़ी हुई है तो इसका खुलासा भी इतिहास लेखन के द्वारा ही होना चाहिए...न कि इस प्रकार के उन्मुक्त उद्बोधन से।"
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मेरा निवेदन है कि इतिहासकारों ने लिखा था और लिखते रहे हैं लेकिन सेकुलर चारणों ने उनका वैसे ही पब्लिक स्पेस से सफाया किया जैसा स्टालिन ने 2 करोड़ से ज्यादा रूसियों का।
वैसे यह 2 करोड़ वाली संख्या कैसे पता चलती अगर सोवियत संघ नहीं टूटता?
अब जानकारी और तर्क पर सेकुलर-वामी एकाधिकार को मोबाइल-नेट ने ध्वस्त कर दिया है और सिटिजन पत्रकारिता की तरह सिटिजन इतिहास लेखन भी हो रहा है।
यहाँ पर तो अभी सिर्फ इतिहासबोध पर मौलिक सवाल पूछा गया है जिससे जूझने में इतिहास के विद्यार्थी सक्षम हैं अगर दृष्टि संपन्न हो तो?
ताजमहल बनाने वाले ने बीटेक नहीं किया होगा लेकिन उसके इंजीनियरिंग पर तो संदेह नहीं कर सकते न।
सेकुलर देशतोड़क चारणों ने अब बोलना बहुत कम कर दिया है।फिर भी उनकी 'उपलब्धियों की हिमालयी ऊँचाई और प्रशांत महासागरीय गहराई तो इससे कम नहीं हो जाती।
देखिए न, ये वही प्रशिक्षित इतिहासकार हैं जिन्होंने नेताजी के मामले में नेहरू और सोवियत संघ-चीन पर चुप्पी साध रखी थी और इंदिरा गाँधी को खुश करने के लिए लाल किले में 'टाइम कैप्स्यूल' गड़वा दिया था ताकि भविष्य के इतिहासकार जब खुदाई में उन शिलालेखों को पाएँ तो नेहरू परिवार को इस देश को निर्माताओं में दर्ज करें, बाकी लोग जाएँ तेल लेने।
इसलिए यह पूछने के बजाए कि सवाल पूछने वाले इतिहासकार हैं या नहीं, यह देखना चाहिए कि सवाल ठीक हैं या नहीं?
खासकर तब जब इतिहासकार नामधारी विद्वान और विदूषियों ने भाँट और चारणों को भी पीछे छोड़ दिया हो।
एक और बात।मेरे पास यह मानने का भी कोई आधार नहीं है कि लगभग 2200 की मेरी फेसबुक मंडली में इतिहास के विद्यार्थी नहीं हैं।हैं और ज्यादातर सेकुलर-वामी-सामी हैं जिनके पास न सवाल हैं न जवाब, सिर्फ बुद्धिविलासी और बुद्धिबाज़ चुप्पी है क्योंकि इनकी पोलपट्टी खुल गई है ।
नेता जी की फाइलों पर किस सेकुलर महान इतिहासकार ने क्या उवाचा?
"...मुझे आपका यह पोस्ट निष्पक्ष नहीं लगा...इतिहास लेखन एक वैज्ञानिक विधि है...किसी के मन का फितूर नहीं। अगर इतिहास लेखन में इतनी ही गड़बड़ी हुई है तो इसका खुलासा भी इतिहास लेखन के द्वारा ही होना चाहिए...न कि इस प्रकार के उन्मुक्त उद्बोधन से।"
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मेरा निवेदन है कि इतिहासकारों ने लिखा था और लिखते रहे हैं लेकिन सेकुलर चारणों ने उनका वैसे ही पब्लिक स्पेस से सफाया किया जैसा स्टालिन ने 2 करोड़ से ज्यादा रूसियों का।
वैसे यह 2 करोड़ वाली संख्या कैसे पता चलती अगर सोवियत संघ नहीं टूटता?
अब जानकारी और तर्क पर सेकुलर-वामी एकाधिकार को मोबाइल-नेट ने ध्वस्त कर दिया है और सिटिजन पत्रकारिता की तरह सिटिजन इतिहास लेखन भी हो रहा है।
यहाँ पर तो अभी सिर्फ इतिहासबोध पर मौलिक सवाल पूछा गया है जिससे जूझने में इतिहास के विद्यार्थी सक्षम हैं अगर दृष्टि संपन्न हो तो?
ताजमहल बनाने वाले ने बीटेक नहीं किया होगा लेकिन उसके इंजीनियरिंग पर तो संदेह नहीं कर सकते न।
सेकुलर देशतोड़क चारणों ने अब बोलना बहुत कम कर दिया है।फिर भी उनकी 'उपलब्धियों की हिमालयी ऊँचाई और प्रशांत महासागरीय गहराई तो इससे कम नहीं हो जाती।
देखिए न, ये वही प्रशिक्षित इतिहासकार हैं जिन्होंने नेताजी के मामले में नेहरू और सोवियत संघ-चीन पर चुप्पी साध रखी थी और इंदिरा गाँधी को खुश करने के लिए लाल किले में 'टाइम कैप्स्यूल' गड़वा दिया था ताकि भविष्य के इतिहासकार जब खुदाई में उन शिलालेखों को पाएँ तो नेहरू परिवार को इस देश को निर्माताओं में दर्ज करें, बाकी लोग जाएँ तेल लेने।
इसलिए यह पूछने के बजाए कि सवाल पूछने वाले इतिहासकार हैं या नहीं, यह देखना चाहिए कि सवाल ठीक हैं या नहीं?
खासकर तब जब इतिहासकार नामधारी विद्वान और विदूषियों ने भाँट और चारणों को भी पीछे छोड़ दिया हो।
एक और बात।मेरे पास यह मानने का भी कोई आधार नहीं है कि लगभग 2200 की मेरी फेसबुक मंडली में इतिहास के विद्यार्थी नहीं हैं।हैं और ज्यादातर सेकुलर-वामी-सामी हैं जिनके पास न सवाल हैं न जवाब, सिर्फ बुद्धिविलासी और बुद्धिबाज़ चुप्पी है क्योंकि इनकी पोलपट्टी खुल गई है ।
नेता जी की फाइलों पर किस सेकुलर महान इतिहासकार ने क्या उवाचा?
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