कोई गैरमुसलमान ईमानदार हो सकता है या नहीं?
प्रश्नः
गुँजन सिन्हा जी का अगला सवाल है: चूँकि ईमानदारी की अवधारणा #इस्लाम_सापेक्ष है, कोई #गैर_मुसलमान #ईमानदार हो सकता है या नहीं?
उत्तर:
वह तो हो ही सकता है तभी हम दोनों एक-दूसरे को ईमानदार मानते हैं (भले ही कहे न!) लेकिन यह मानना व्यवहारतः हमारे अलग #साँस्कृतिक_संदर्भ के कारण #सनातनी या #धार्मिक (#कर्तव्यनिष्ठा ) के अधिक करीब है।
#चोला #अरबी है पर #आत्मा #भारतीय है।
वैसे ही जैसे #सेकुलरिज़म को, जो महज कुछ सौ साल पुराना है, हम #धर्मनिरपेक्षता (जो #सुहागरात में #रक्षाबंधन के #गीत गाने का एक उदाहरण है) और #पंथनिरपेक्षता
का समानार्थी मानते हैं लेकिन आचार में वह #सर्वपंथ_समभाव है क्योंकि यही हमारे साँस्कृतिक संदर्भ में स्वीकार्य है।
गुँजन सिन्हा जी का अगला सवाल है: चूँकि ईमानदारी की अवधारणा #इस्लाम_सापेक्ष है, कोई #गैर_मुसलमान #ईमानदार हो सकता है या नहीं?
उत्तर:
वह तो हो ही सकता है तभी हम दोनों एक-दूसरे को ईमानदार मानते हैं (भले ही कहे न!) लेकिन यह मानना व्यवहारतः हमारे अलग #साँस्कृतिक_संदर्भ के कारण #सनातनी या #धार्मिक (#कर्तव्यनिष्ठा ) के अधिक करीब है।
#चोला #अरबी है पर #आत्मा #भारतीय है।
वैसे ही जैसे #सेकुलरिज़म को, जो महज कुछ सौ साल पुराना है, हम #धर्मनिरपेक्षता (जो #सुहागरात में #रक्षाबंधन के #गीत गाने का एक उदाहरण है) और #पंथनिरपेक्षता
का समानार्थी मानते हैं लेकिन आचार में वह #सर्वपंथ_समभाव है क्योंकि यही हमारे साँस्कृतिक संदर्भ में स्वीकार्य है।
लेकिन धर्मनिरपेक्षता तो एक ऐसी अवधारणा है जो न सिर्फ सेकुलरिज़म का भीषण
रूप से गलत अनुवाद है बल्कि अव्यावहारिक है क्योंकि आप और हम अपने #धर्म (#कर्तव्य या #गुण) से कैसे #निरपेक्ष हो सकते है?
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