ना जाने कितने पाकिस्तान लोगों के दिलों में बसते हैं...
हो जाए अगर इशारा शाहे खुरासान का
सज़दा न करूँ हिन्द की नापाक ज़मी पर...
आमतौर पर पूरी दुनिया में अल्पमत वाले बराबरी की लड़ाई लड़ते हैं लेकिन भारत में मुसलमान अलग दिखने की लड़ाई लड़ते रहे हैं।
इसी कारण पाकिस्तान बना था और भी न जाने कितने पाकिस्तान लोगों के दिलों में बसते हैं।
अलग इसलिए भी दिखना था कि हिन्दुस्तान नापाक था उनके लिए:
हो जाये इशारा अगर शाहे खुरासान का
सज़दा न करूँ हिन्द की नापाक ज़मी पर ।
ये लिखा है अल्लामा इक़बाल ने जिनके दादा थे कश्मीरी पंडित यानी दो पीढ़ियों में ही इनका मन भारत से अरब स्थानांतरित हो गया ।
और चूँकि नापाक से अलग पाक ही हो सकता है तो पाकिस्तान भी बन गया ।
यह होता है एक-किताबी और अंतिम-पैगंबरी मजहब का असर ।
इन्हीं साहब ने लिखा था मशहूर तराना:
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्ताँ हमारा...
लेकिन अगर दो पीढ़ियों में सप्रू इक़बाल हिन्दुस्तान से खुरासान जा सकते हैं तो आज टेक्नालॉजी-केन्द्रित समाज में वापस हिन्दुस्तान भी आ सकते हैं।
शर्त यही है कि
खूब और बेरोक-टोक बात की जाए,
बेलाग बात की जाए,
जो समझ में आए कह दिया जाए।
और शर्त यह भी है कि
नकली बात न हो,
किसी की कमी को न ढका जाए,
अच्छी बातें हमेशा से कही जाती रही हैं,
अब अप्रिय बातें भी कह -सुन ली जाएँ।
फिर समस्या भी क्या जिसका समाधान न हो।आप और हम और हमारे जैसे बहुत सारे लोग ऐसा कर रहे हैं;
कुछ तो अच्छा होकर ही रहेगा ।
ऐसा नहीं हुआ तो दिलों में पल रहे पाकिस्तान लावा की तरह बाहर आएँगे और सदियों की रवायत राख कर देंगे।
समय ज्यादा नहीं है क्योंकि लगभग 100 करोड़ मोबाइल कनेक्शन वाले मुल्क में टेक्नोलॉजी विलंब की इजाजत नहीं देगी।
(जानेमाने साहित्यकार और चिंतक प्रोफेसर Asghar Wajahat साहेब की वाल पर मेरी एकाधिक पोस्टों का संशोधित रूप।)
सज़दा न करूँ हिन्द की नापाक ज़मी पर...
आमतौर पर पूरी दुनिया में अल्पमत वाले बराबरी की लड़ाई लड़ते हैं लेकिन भारत में मुसलमान अलग दिखने की लड़ाई लड़ते रहे हैं।
इसी कारण पाकिस्तान बना था और भी न जाने कितने पाकिस्तान लोगों के दिलों में बसते हैं।
अलग इसलिए भी दिखना था कि हिन्दुस्तान नापाक था उनके लिए:
हो जाये इशारा अगर शाहे खुरासान का
सज़दा न करूँ हिन्द की नापाक ज़मी पर ।
ये लिखा है अल्लामा इक़बाल ने जिनके दादा थे कश्मीरी पंडित यानी दो पीढ़ियों में ही इनका मन भारत से अरब स्थानांतरित हो गया ।
और चूँकि नापाक से अलग पाक ही हो सकता है तो पाकिस्तान भी बन गया ।
यह होता है एक-किताबी और अंतिम-पैगंबरी मजहब का असर ।
इन्हीं साहब ने लिखा था मशहूर तराना:
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्ताँ हमारा...
लेकिन अगर दो पीढ़ियों में सप्रू इक़बाल हिन्दुस्तान से खुरासान जा सकते हैं तो आज टेक्नालॉजी-केन्द्रित समाज में वापस हिन्दुस्तान भी आ सकते हैं।
शर्त यही है कि
खूब और बेरोक-टोक बात की जाए,
बेलाग बात की जाए,
जो समझ में आए कह दिया जाए।
और शर्त यह भी है कि
नकली बात न हो,
किसी की कमी को न ढका जाए,
अच्छी बातें हमेशा से कही जाती रही हैं,
अब अप्रिय बातें भी कह -सुन ली जाएँ।
फिर समस्या भी क्या जिसका समाधान न हो।आप और हम और हमारे जैसे बहुत सारे लोग ऐसा कर रहे हैं;
कुछ तो अच्छा होकर ही रहेगा ।
ऐसा नहीं हुआ तो दिलों में पल रहे पाकिस्तान लावा की तरह बाहर आएँगे और सदियों की रवायत राख कर देंगे।
समय ज्यादा नहीं है क्योंकि लगभग 100 करोड़ मोबाइल कनेक्शन वाले मुल्क में टेक्नोलॉजी विलंब की इजाजत नहीं देगी।
(जानेमाने साहित्यकार और चिंतक प्रोफेसर Asghar Wajahat साहेब की वाल पर मेरी एकाधिक पोस्टों का संशोधित रूप।)
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