Wednesday, October 14, 2015

तो हो जाए एक सर्वे इन पुरस्कार-लौटाऊ लेखकों की आजीविका पर?

तो हो जाए एक #सर्वे इन #पुरस्कार_लौटाऊ #लेखकों की आजीविका पर? साथ ही यह भी कि अंतिम बड़ी महत्वपूर्ण किताब आपने कब लिखी?
#लाइब्रेरी को छोड़, आपकी किताबें कितनी बिकीं और पढ़ी गई? कितने दलित-पिछड़े समूहों के लेखकों को आपने पुरस्कार दिए? #साहित्य_अकादमी एक #स्वायत्त_संस्था है और इसका अध्यक्ष लेखक खुद ही निर्वाचित करते हैं ।
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मित्रो,
नमस्कार।इन पुरस्कार-लौटाऊ लेखकों के बारे में लोगों का कहना है कि एक तो ये लोग  आपस में ही पुरस्कार बाँट-बँटा लेते थे और दूसरे पाठकों की छोड़िये, खुद इन्हें भी याद नही था कि ये लेखक-वेखक हैं।
नए पाठकों ने अपने नए लेखक ढूँढ लिए हैं और इसमें किसी साहित्य अकादेमी का कोई रोल रह नहीं गया है।इंटरनेट, मोबाइल, सोशल मीडिया ने अकादेमियों, टीवी, अखबार आदि को बहुत पीछे धकेल दिया है।
अकेले #अमीश त्रिपाठी के  'शिवा त्रयी' (मेलूहा के मृत्युंजय, नागाओं के रहस्य, वायुपुत्रों की शपथ) की मूल अंग्रेज़ी और हिन्दी अनुवादों की जितनी बिक्री हुई है उतनी पिछली दस सालों में भी इन 25-30 पुरस्कार-लौटाऊ लेखकों की किताबें नहीं बिकीं।
मतलब साफ है कोई ये भक्त कवियों तुलसी-कबीर-मीरा-सूर-नानक-रैदास की तरह जनता के कवि या लेखक तो हैं नहीं।
ये सब है मन और आमतौर पर अपने लेखन से #दरबारी जो किसी पार्टी लाइन पर किसी
#नेहरू_गाँधी के लिए,  उनकी प्रशंसा में या उनके बताये लीक पर कलम घिसनेवाले जिन्हें पाठकों की भावना से कोई मतलब नहीं।
हिन्दी में #बिहारी ऐसे ही कवि थे, देश डूब रहा था और वे  '#नायिका_भेद' लिखने में मस्त थे ।
बात भी सही है,  "सैयाँ भये कोतवाल, अब डर काहे का" जिसका मूलमंत्र हो, वो पाठकों की रुचियों पर अपना टाइम क्यों खराब करेगा?
लेकिन इंटरनेट-मोबाइल ने सब गुड़-गोबर कर दिया है।इनका जो मजबूर #पाठक_वर्ग था वो इनके हाथ से फुर्र हो गया है।अब ये करें तो क्या करें, जायें तो जायें कहाँ?
तो पुरस्कार लौटाकर ये दुनिया को बताना चाहते हैं कि देखो, मैं लेखक हूँ क्योंकि मुझे पुरस्कार मिला था! ये नहीं कि देखो मैंने कैसे-कैसे क्या लिखा! इनसे ज्यादा इन पुरस्कारों की अहमियत कौन जानता होगा ? क्योंकि ये #पुरस्कार ज्यादातर इन्हें लेखन की  गुणवत्ता के लिए नहीं मिले थे, बल्कि मिले थे किसी संगठन, विचारधारा  या पार्टी के प्रति #अंधभक्ति के लिए।
कुछ अपवादों को छोड़कर इनमें से अधिकतर की #आजीविका लेखन से नहीं , किसी और धंधे से चलती है ।
तो हो जाए एक सर्वे इन पुरस्कार-लौटाऊ लेखकों की आजीविका पर?
साथ ही यह भी कि अंतिम बड़ी महत्वपूर्ण किताब आपने कब लिखी?
लाइब्रेरी  को छोड़, आपकी किताबें कितनी बिकीं और पढ़ी गई?

आपका विनीत,
चन्द्रकान्त प्रसाद सिंह ।

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