Friday, December 4, 2015

आतंकवादियों के मजहब और नाम न उजागर किए जाएँ?

भारत के ज्यादातर सेकुलर-वामी-इस्लामी इस बात से बहुत आहत होते हैं कि आतंकवादी घटनाओं के बाद उन्हें अंजाम देनेवालों के नाम और उनके मजहब का जिक्र होता है।
उनका मानना है कि जैसे बलात्कार पीड़िताओं के नाम उजागर नहीं किये जाते वैसे ही आईएसआईएस और इनके समानधर्मा संगठनों से जुड़े आतंकवादियों के नाम उजागर नहीं किये जाने चाहिए क्योंकि ऐसी छवि सी बनती जा रही है मानों इस्लाम और आतंकवाद एक ही सिक्के के दो पहलू हों।
इस सेकुलर-वामी-इस्लामी चिंता में दम है क्योंकि आजकल ज्यादातर आतंकवादी मुसलमान ही निकलते हैं जबकि इस्लाम को तो कहा ही जाता है  'शांति का मजहब'।
तो क्या यही नियम अन्य अपराधियों जैसे हत्यारों, डकैतों , बलात्कारियों आदि पर भी लागू होना चाहिए जिससे उनके समानधर्मा लोग भी आहत न हो?
कल को 'आपातकाल' पर बहस के दरम्यान काँग्रेस पार्टी , श्रीमती इंदिरा गाँधी और संजय गाँधी की भी चर्चा नहीं होनी चाहिए ताकि गाँधी-नेहरू परिवार आहत न हो?
महाराष्ट्र की एक हालिया घटना में लोकमत समाचार के दफ्तरों पर कुछ लोगों ने इसलिए हमले किये हैं कि उसमें आईएसआईएस को मिलनेवाले धन के स्रोतों की ग्राफिक जानकारी दी गई है।अब ये हमलावर भी मुसलमान निकले ।

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