Friday, July 15, 2016

अल्पसंख्यक कश्मीरी पंडित कायर थे तो बहादुर कौन?

जनाब हसन जावेद(पत्रकार, प्रभात ख़बर) ने
श्री राजेन्द्र तिवारी की वाल पर कमेंट लिखा है कि कश्मीरी पंडित कायर थे जो घाटी से भाग निकले और जो बहादुर थे , वे जो संघर्ष कर रहे हैं।
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सवाल है कि अल्पसंख्यक कश्मीरी पंडित कायर थे तो बहादुर कौन? ज़ाहिर है उनके पड़ोसी मुसलमान जिनकी आबादी 90 प्रतिशत से भी ज़्यादा थी।
दूसरा सवाल, कश्मीरी पंडित किससे डरकर घाटी छोड़कर भागे? उत्तर है आतंकवादी।
इन आतंकवादियों का किसने बहादुरी से विरोध किया? क्या बहुसंख्यक मुसलमानों ने? उत्तर है नहीं।
तो वहाँ रह रहे मुसलमान किसलिए संघर्ष कर रहे हैं? कश्मीरी पंडितों की वापसी के लिए? उत्तर है नहीं।
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तो बहुसंख्यक मुसलमानों की बहादुरी किस बात में है? पहली बहादुरी है पंडितों के निष्कासन पर साज़िशि चुप्पी और दूसरी बहादुरी है तीन लाख पंडितों को हत्या, बलात्कार और नरसंहार के द्वारा घाटी से खदेड़नेवाले आतंकवादियों का साथ।

तभी तो आतंकी सरगना बुरहान वानी की एनकाउंटर में मौत के विरोध में बहुसंख्यक मुसलमान सुरक्षाबलों पर ग्रेनेड और पत्थरों से हमले कर रहे हैं।
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किसी को याद है कि मुसलमानों ने ऐसी बहादुरी अपने अल्पसंख्यक पड़ोसी पंडितों के नरसंहार , हत्या, बलात्कार और अपहरण के ख़िलाफ़ दिखाई हो?
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तो कश्मीरी बहुसंख्यक मुसलमानों के संघर्ष और हिम्मत के बारे में क्या निष्कर्ष निकलता है?
यही न कि अत्याचारी हिम्मती होते हैं ?
और यह भी कि कश्मीरी मुसलमानों ने कायर हिंदुओं को घाटी से भगाने में वैसे ही हिम्मत दिखाई जैसे कि यज़ीद ने कर्बला में (जहाँ हसन-हुसैन और उनके परिवारवालों तथा समर्थकों को 40 दिनों तक भूखे-प्यासे मार डाला गया था)?
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आज पूरी दुनिया को यज़ीदों ने कर्बला बना दिया है, इसमें अव्वल नंबर पर इस्लामी देश हैं।

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