Monday, July 11, 2016

आतंकवादी, देशविरोधी और दिलचस्प सेकुलर सहानुभूति

यह दौर बड़ा दिलचस्प है।कहीं किसी भी वजह से एक मुसलमान, दलित या सेकुलर-वामपंथी मारा जाये तो मीडिया के प्याले में तूफ़ान आ जाता है और सब सनातन खलनायक हिंदुत्व के पीछे नैसर्गिक भाव से हाथ धोकर पड़ जाते हैं। लेकिन वह व्यक्ति अगर हिन्दू-विरोधी या अफ़ज़ल-प्रेमी ना हुआ तो फिर बात आई-गई हो कर रह जाएगी।
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दूसरी तरफ हत्या को अंजाम देनेवाला अगर मुसलमान हुआ तो मीडिया में एक-दो लाईन की रस्मी भर्त्सना और लंबे-लंबे जस्टिफिकेशन कि ऐसा क्यों हुआ और क्यों दूसरे लोग हत्या के लिए बेचारे हत्यारे से भी ज़्यादा जिम्मेदार हैं। लेकिन ऐसे मामलों में सेकुलर-वामपंथी तबका आमतौर पर गोधरा-मौनासन मुद्रा धारण कर लेता है। ढाका नरसंहार पर किसने क्या कहा?
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उन्हें इंतज़ार रहता है अखलाक़ों और रोहित वेमुलाओं का, याकूब मेमनों और अफ़ज़ल गुरुओं का।गोधरा तो उनके लिये दूध की मक्खी की तरह है , असली दूध तो है गुजरात के कम्युनल दंगे; दिल्ली और भागलपुर के सेकुलर दंगे तो कोट की धूल की तरह हैं, असली कोट तो है इशरत जहाँ मुठभेड़ जिसमें गुजरात के मुख्यमंत्री की हत्या करने आयी एक बेचारी आतंकवादी अल्ला मियां को प्यारी हो जाती है और जिसे एक सेकुलर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार की बेटी घोषित कर देते हैं।

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