Monday, July 11, 2016

ऐसी वैक्सिन जो एक औसत पढ़े-लिखे मुसलमान से सच बोलवा दे?

कोई ऐसी वैक्सिन है क्या जिसे लेने के बाद एक औसत पढ़ा-लिखा मुसलमान सच बोलने लग जाए ?
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उसमें इतनी हिम्मत पैदा हो जाए कि निर्दोष लोगों की हत्या करनेवाले जेहादियों की मन-ही-मन प्रशंसा करने के बजाय वह 1400 साल पुराने इस्लाम में इक्कीसवीं सदी के नवजागरण की लौ जगाने लगे? विमर्श शुरू होने के तुरंत बाद तर्क-तथ्य और मुद्दे के बीच आसमानी किताब घुसेड़ना बंद कर दे?
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वह इतना विवेकी हो जाए कि मुसलमान बनाम काफ़िर तथा दारुल इस्लाम बनाम दारुल हरब की निगाह से दुनिया को देखने के बजाय उसे करुणा-सिंचित बनाम करुणा-वंचित की निगाह से देखे?
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वह इतना दुनियाबी हो जाए कि बिना तारीख़ वाली क़यामत के बाद ज़न्नत में 72 कुमारी परियों और शराब  के लिए दूसरों की जान लेने -अपनी जान देने के बजाय इसी जहान में बिना किसी की नाहक जान लिए एकअदद जीवन साथी के लिए जिये? अपनी मेहनत की कमाई से जरूरत भर शराब भी पीये, चखना भी खाये, और अन्य सुख-सुविधाओं के आनंद भी ले।
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अगर ऐसी वैक्सिन का आविष्कार नहीं हुआ तो देर-सबेर हमसब एक गाना गाते हुए पाये जाएंगे:
डूबल डूबल भंइसिया पानी में...

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