Monday, July 11, 2016

ईद मुबारक! ईद मुबारक!! ईद मुबारक!!!

ईद मुबारक! ईद मुबारक!! ईद मुबारक!!!
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तीन बार 'ईद मुबारक' इसलिये कि कुछ संवेदनशील टाइप मुसलमान कह रहे हैं कि जब रमज़ान के दौरान ही वहाबियों ने बग़दाद, ऑरलैंडो, इस्तान्बुल, ढाका , मदीना में इतनी हत्याओं को अँजाम दिया हो तो फिर उत्सव कैसा और किस बात का?
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तो अल्लाह के बन्दों, उत्सव इस बात का:

कि हम इन हत्याओं से नहीं डरते;
कि हम हत्यारों को सबक सिखाकर ही दम लेंगे;
कि हम बचपन से ही रटा-रटा कर दिलोदिमाग में बैठाए जानेवाले जिहाद का अर्थ ही बदल देंगे;
कि हम इस जहान में अपने जीवनसाथी, बच्चे, गाँव, देश और मानवीय मूल्यों के लिए जीयेंगे और मरेंगे न कि क़यामत के बाद के जहान में 72 हूरों, गिल्मों और शराब के लिये।
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ईद मुबारक! ईद मुबारक!! ईद मुबारक!!!

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