जेटली विपक्ष के लाड़ले और ईरानी आंखों का काँटा क्यों?
जेटली विपक्ष के लाड़ले और ईरानी आंखों का काँटा क्यों?
प्रोफेसरों के चक्कर में एक चूक (दिल्ली विश्वविद्यालय के चारवर्षीय स्नातक कार्यक्रम को निरस्त करना) के अलावा स्मृति ईरानी के काम क़ाबिले तारीफ़ हैं। भारत के काहिल और ज़ाहिल शिक्षातंत्र को ईरानी ने झकझोर दिया, इसमें कोई संदेह नहीं। कोई भी कितने दिन तक मानसिक गुलामी के अगुआ प्रोफेसरों की सुनता रहेगा।
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फ़िलहाल मोदी मंत्रिमंडल में कोई भी उनके जैसा तेज-तर्रार वक्ता नहीं है और चार को छोड़ अपने काम को गंभीरता से लेनेवाला भी नहीं।
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स्मृति ने अपने को संकटमोचक साबित किया है।अगर वे काम नहीं कर रही होतीं तो उनका अंदर और बाहर से इतना विरोध नहीं होता।
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असल बात यह है कि जेटली ने रोज़गार के मोर्चे पर जो नुकसान किया है स्मृति ईरानी उसकी भरपाई करेंगी।जेटली ने तो पीएफ से लेकर वेतन आयोग तक, सरकार के ख़िलाफ़ एक माहौल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।वे कांग्रेस के इतने लाड़ले क्यों हैं ?और स्मृती ईरानी आंखों का काँटा क्यों?
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स्मृति ईरानी में प्रधानमंत्री का कितना विश्वास है यह जानने के लिए उनके मंत्रालय का बजट, पूरे देश खासकर उत्तरप्रदेश में उसकी रोज़गार सृजन क्षमता(अगले साल यूपी में चुनाव हैं), उसमें एफडीआई आदि के आंकड़ों पर नज़र डाल लीजिये।
प्रोफेसरों के चक्कर में एक चूक (दिल्ली विश्वविद्यालय के चारवर्षीय स्नातक कार्यक्रम को निरस्त करना) के अलावा स्मृति ईरानी के काम क़ाबिले तारीफ़ हैं। भारत के काहिल और ज़ाहिल शिक्षातंत्र को ईरानी ने झकझोर दिया, इसमें कोई संदेह नहीं। कोई भी कितने दिन तक मानसिक गुलामी के अगुआ प्रोफेसरों की सुनता रहेगा।
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फ़िलहाल मोदी मंत्रिमंडल में कोई भी उनके जैसा तेज-तर्रार वक्ता नहीं है और चार को छोड़ अपने काम को गंभीरता से लेनेवाला भी नहीं।
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स्मृति ने अपने को संकटमोचक साबित किया है।अगर वे काम नहीं कर रही होतीं तो उनका अंदर और बाहर से इतना विरोध नहीं होता।
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असल बात यह है कि जेटली ने रोज़गार के मोर्चे पर जो नुकसान किया है स्मृति ईरानी उसकी भरपाई करेंगी।जेटली ने तो पीएफ से लेकर वेतन आयोग तक, सरकार के ख़िलाफ़ एक माहौल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।वे कांग्रेस के इतने लाड़ले क्यों हैं ?और स्मृती ईरानी आंखों का काँटा क्यों?
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स्मृति ईरानी में प्रधानमंत्री का कितना विश्वास है यह जानने के लिए उनके मंत्रालय का बजट, पूरे देश खासकर उत्तरप्रदेश में उसकी रोज़गार सृजन क्षमता(अगले साल यूपी में चुनाव हैं), उसमें एफडीआई आदि के आंकड़ों पर नज़र डाल लीजिये।
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