Monday, July 11, 2016

आतंकवाद पर पढ़े-लिखे और अनपढ़ मुसलमान में कोई अंतर नहीं

यह समझ में नहीं आता कि किसी पर आतंकवाद फ़ैलाने के आरोप मात्र से भाईलोग बिलबिलाने लगते हैं जबकि आतंकवादी घटनाओं में मारे गए लोगों पर, चाहे वे मुसलमान ही क्यों न हों, वे श्मशान वाली चुप्पी साध लेते हैं।
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शाहबानो को गुजारा भत्ता के ख़िलाफ़ सड़क पर वे, समान नागरिक संहिता के विरोध में वे, अफ़ज़ल गुरु और याकूब मेमन के समर्थन में वे, दारा शिकोह को धिक्कार औरंगज़ेब का बोसा ले वे फिर भी वे यह भी चाहें कि लोग उन्हें विश्वास करें।
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लेकिन जब आप अफ़ज़ल गुरु और याकूब मेमन पर सुप्रीम कोर्ट को नहीं मानते तो ज़ाकिर नायक पर आरोप को कैसे मानेंगे!
कुछ तो केमिकल लोचा है जो पढ़े-लिखे और अनपढ़ मुसलमान के अंतर को ध्वस्त कर देता है!
कहीं फाइनल पैग़म्बर और फाइनल किताब तो नहीं?

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