Thursday, August 25, 2016

जाहिल और जहीन मुसलमानों में क्या समानता है?

जाहिल और जहीन मुसलमानों में क्या समानता है?

मुझे उन मुसलमानों की फेसबुक पर दो सालों से तलाश है जो किताबी फ़रमान से ऊपर उठकर बात करते हों। लेकिन जाहिल और पढ़ेलिखे मुसलमान इस मोर्चे पर एक हैं कि काफ़िर का क़त्ल तक जायज़ है अगर वह मोसल्लम ईमान को गले नहीं लगाता। ख़ुदाई जुबान में इसे 'काफ़िर वाजिबुल क़त्ल' कहते हैं। पूरी दुनिया में जहाँ भी उन्हें जिस हद तक मौका मिला उस हद तक वे इस फॉर्मूले पर अमल करते रहे हैं। इस बात को पीटर हेमंडस् ने अपनी पुस्तक 'स्लेवरी, टेररिज्म एण्ड इस्लाम' में 50 से अधिक देशों से जुटाये आंकड़ों के आधार पर साबित किया है।

पाकिस्तान-बांग्लादेश में हिन्दुओं का विलोप, कैराना-मुर्शिदाबाद-मालदा से हिंदुओं का पलायन, घाटी से हिंदुओं का निष्कासन और शादी-विवाह में शरीया लागू करवाना जैसी घटनाएँ काफ़िरों प्रति इसी मजहबी घृणा की छोटी-बड़ी कड़ियाँ हैं।

कितने मुसलमान नेताओं ने कश्मीरी हिंदुओं पर वही संवेदना दिखाई है जिसकी बारिश वे जेहादी हत्यारों-बलात्कारियों पर करते रहते हैं? बलुचिस्तान पर प्रधानमंत्री मोदी के बयान से अगर पाकिस्तान की जगह किसी गैरइस्लामी (काफ़िर) देश को नुकसान हो रहा होता तो भारत के मुसलमान वोटर को परेशानी नहीं होती। फ़िर काँग्रेस के सलमान ख़ुर्शीद के पेट में भी दर्द नहीं होता। इसलिये मोदी की बलुचिस्तान नीति का ख़ुर्शीद द्वारा विरोध को किसी भी और दृष्टि से देखना सेकुलर खाल में जेहादी धूर्तता के सिवा और कुछ भी नहीं।

पिछले हज़ार सालों में एक से एक मुसलमान हो गए हैं जो भारत के सर्वोत्तम के प्रतीक थे और उन्होंने लोगों के दिलों पर राज किया। परन्तु यहाँ के अधिसंख्य मुसलमानों ने उन्हें अपना नहीं माना क्योंकि इन महान आत्माओं ने यहाँ के लोगों को मुसलमान और काफ़िर में बाँटकर देखने से इनकार कर दिया था। यही वजह है कि भारत के मुसलमानों के नायक संत कबीर या अब्दुल कलाम जैसे लोग न थे और न कभी हो सकते हैं। उनके नायक हैं ग़ोरी, ग़ज़नी, औरंगज़ेब, याकूब मेमन, अफ़ज़ल गुरु और बुरहान वानी जैसे लोग। जो इसके अपवाद हैं वे नियम को सिद्ध ही करते हैं।

अगर ऐसा नहीं होता तो पाकिस्तान नहीं बनता, कश्मीर में हिंदुओं का जातिनाश नहीं होता और भारत के अनेक हिस्सों में न जाने कितने 'पाकिस्तान' नहीं बनते।

लेकिन टेक्नोलॉजी और लोकतंत्र ने स्थिति को पारदर्शी बनाकर शांतिप्रियता की खाल को उघाड़कर रख दिया है। अगले 5 साल में वो होगा जो हज़ार सालों में किसी ने सोचा भी नहीं होगा।

आज भारत का हिन्दू-सिख-जैन-बौद्ध-पारसी बहुमत विमर्श-जिहाद कर रहा है जिसमें उसे कोई सफलता  मिलेगी इसमें घोर संदेह है। कल यही विमर्श-जेहादी मुसलमानों की नक़ल पर असली 'जिहाद' करेंगे। यानी बहुमत का भी 'मुसलमान' बनना तय है।मजहब का सभ्यता से संघर्ष तय है।160 करोड़ मुसलमानों का 600 करोड़ गैरमुसलमानों  से अबतक का भीषणतम संघर्ष तय है। इसकी छिटफुट शुरुआत दुनिया के हर हिस्से में हो चुकी है। पहले दौर की बाज़ी मुसलमानों के हाथ रहेगी, यह भी तय है लेकिन अंतिम परिणाम क्या होगा, यह भी उतना ही तय है। हालाँकि यह सब किस क़ीमत पर होगा , इसपर कुछ नहीं कह सकते।

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