Thursday, August 25, 2016

क्या कोई दलित-मन भी चिंतक हो सकता है?

क्या कोई दलित-मन भी चिंतक हो सकता है?
सवर्ण और पिछड़ा मन भी चिंतक हो सकता है?
कोई कम्युनिस्ट मन भी चिंतक हो सकता है?
मुस्लिम या ईसाई मन भी  चिंतक हो सकता है?

#चिंतक होने के लिए उन्मुक्त मन चाहिए जो जीवन-जगत की चीजों के अव्यक्त रिश्ते को वाणी दे सके। एक #दलित ने मान लिया है कि सदियों से वह वंचित है और उसके और उसकी उपलब्धियों के बीच में सवर्ण नामक समूह खड़ा है जिससे #घृणा ही उसे सफलता दिलाने में सक्षम है न कि कड़ी मेहनत और लगन।
यही हाल एक #सवर्ण मन का है जिसके लिए सारी विफलताओं के केंद्र में दलित और #पिछड़े हैं जो #आरक्षण के कारण सारी मलाई मारे जा रहे हैं।

#कम्युनिस्ट के लिये दुनिया की सारी समस्याओं की जड़ में #बुर्जुआ शोषण है इसलिये एक ख़ूनी #क्रान्ति के द्वारा बुर्जुआ सत्ता का नाश ही एकमात्र उपाय है।

वैसे ही एक #ईसाई का यह निष्कर्ष है कि सभी ग़ैर-ईसाइयों को सभ्य बनाने (ईसाई बनाना) में ही उसकी और दुनिया की असली #मुक्ति है।इसके लिये यानी परमपिता के आदेश को तामील करने की राह में #छल-बल सबकुछ जायज़ है।

अग्रज ईसाइयों के नक्शेक़दम एक #मुसलमान के लिए तबतक चैन हराम है जबतक सारी दुनिया के काफ़िरों को चाहे जैसे हो मुसलमान न बना दिया जाए(दारुलइस्लाम); इस्लाम कबूल न करने पर उनकी हत्या भी वाजिब है (#काफ़िर_वाजिबुल_क़त्ल)।

#चिंतनीय बात यह है कि जब एक दलित, सवर्ण, पिछड़े, कम्युनिस्ट, ईसाई या मुसलमान के लिए सबकुछ पहले से #तय है तो फिर चिंतन के लिये बचा क्या? जब चिंतन के लिये कुछ नहीं बचा ही नहीं तो फिर ये लोग चिंतक कैसे हो गए!

#कबीर मुसलमान नहीं थे, इसलिए चिंतक थे।
#रविदास दलित नहीं थे, इसलिये चिंतक थे।
#बुद्ध- चाणक्य -#शंकराचार्य-#ओशो सवर्ण नहीं थे, इसलिये चिंतक थे।
#गाँधी और लोहिया पिछड़े नहीं थे , इसलिये चिंतक थे।
#इक़बाल जबतक "मुस्लिम हैं हम वतन है सारा जहाँ हमारा" तराना नहीं लिखा था तबतक चिंतक थे।
#जिन्ना मुसलमान थे, इसलिये चिंतक नहीं थे।
लेनिन-स्टालिन-#माओ कम्युनिस्ट थे, इसलिए चिंतक नहीं थे।
#नेहरू आधा कम्युनिस्ट आधा यूरोपवादी थे, इसलिये चिंतक नहीं थे।

जे है से कि:
आप या तो दलित हैं या चिंतक, दोनों एक साथ नहीं।
सवर्ण-पिछड़े हैं या चिंतक, दोनों एक साथ नहीं।
ईसाई-मुसलमान-कम्युनिस्ट हैं या चिंतक, दोनों एक साथ नहीं।
इन्हें चिंतक मानना तो #सुहागरात में #रक्षाबंधन के गीत गाने जैसा है।
फ़िर भी आप दोनों पर जिद करेंगे तो मेरे गाँव के चौक-चौराहे के अड्डेबाज़ बेसाख़्ता बोल पड़ेंगे:
#हँसुआ के लगन #खुरपी के विआह(विवाह)!

0 Comments:

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home