Friday, August 5, 2016

लोग भड़कना बंद कर दें तो भड़कानेवाले का क्या होगा?

जनाब असग़र वजाहत ने अपनी वाल पर स्टेटस अपडेट किया है कि कुछलोग फेसबुक पर उनका नाम देखते ही वैसे ही भड़क उठते हैं जैसे लाल कपड़ा देखकर साँड।
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इससे याद आया कि तारेक फ़तह , तुफैल अहमद , वफ़ा सुल्तान, हसन निसार और हिरसी अली का भी नाम देखते ही कुछ लोग भड़क जाते हैं।
वैसे ही कुछ लोग औरंगज़ेब का नाम सुनते ही भड़क जाते हैं तो कुछ लोग दारा शिकोह का।
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भड़कने वाले ये लोग अलग-अलग हैं या एक ही कुल से ताल्लुक रखते हैं?
दोनों का तुलनात्मक अध्ययन कैसा रहेगा?
या यह मान लिया जाये कि भड़कने वालों का क्या, वे तो भड़कते ही रहेंगे?
क्या यह भी हो सकता है कि लोग भड़कना बंद कर दें तो भड़काने वाले की दुकान ही बंद हो जाए?
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सेकुलर दास ने धीरे से बताया है कि लाल-सलाम वाले तो लाल कपड़ा और साँड दोनों का इंतज़ाम कर देते हैं लेकिन बिना फीस के नहीं।

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