Thursday, August 4, 2016

कांग्रेस के परिवारवाद से कम घातक नहीं है भाजपा की बौद्धिक कायरता

कांग्रेस के परिवारवाद से कम घातक नहीं है भाजपा की बौद्धिक कायरता

जिस तरह से कांग्रेस की कमज़ोरी परिवारवाद है उसी तरह भाजपा की कमज़ोरी बौद्धिक कायरता है जो इसके डीएनए में है। आज भारत में जो कुछ पाकिस्तान कर पा रहा है उसकी बड़ी वजह है जनता पार्टी की सरकार के जनसंघी विदेशमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी के निर्देश पर पाकिस्तान से अपनी आज़ादी के लिए लड़ रहे बलूचियों को मिल रही भारतीय सहायता का बंद हो जाना।
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जिस तरह लड़क भुरभुर में अंतरराष्ट्रीय नेता बनने के चक्कर में नेहरू कश्मीर मामले को बिलावजह संयुक्त राष्ट्रसंघ ले गए उसी तरह वाजपेयी ने बलूचों को मिल रही सहायता बंद करवाकर पाकिस्तान से PoK खाली करने के बजाय उसे पंजाब में ख़ालिस्तान आन्दोलन को खड़ा करने और बाद में कश्मीर घाटी में पैठ बढ़ाने का समय और हौसला दे दिया।
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कश्मीर पर नेहरू की बचकानी हरकत से हुये नुकसान को इन्दिरा गाँधी ने पाकिस्तान को बाँटकर कम किया और वो बलुचिस्तान को स्वतंत्रता दिलाकर पाकिस्तान की कमर तोड़ने में सक्षम हो जातीं।लेकिन बीच में आ गए जनता पार्टी सरकार के कवि ह्रदय विदेशमंत्री वाजपेयी।
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जिस वीपी सिंह की सरकार के दौरान कश्मीरी पण्डितों को भगाया गया उस सरकार को भी भाजपा का समर्थन था।
भाजपा की बौद्धिक कायरता के पीछे हिन्दुओं की हज़ारसाला ग़ुलामी और फिर उससे पैदा हुई मानसिक ग़ुलामी है जो इसकी राष्ट्रीयता पर भी भारी पड़ जाती है।
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इसी बौद्धिक कायरता का ताज़ा उदाहरण है बदजुबान बसपा नेता के सामने निस्सहाय होना। अन्य मिसालें हैं:
1980 में जनसंघ के नये अवतार भाजपा से डॉ सुब्रमण्यम स्वामी को अलग करना(स्वामी को आपातकाल के दौरान जनसंघ ने राज्यसभा का सांसद बनाया था), 1990 के दशक में अप्रतिम रणनीतिकार और स्वतंत्रचेता गोविंदाचार्य को पार्टी से बाहर निकालना, जनाधार वाले पिछड़े नेताओं उमा भारती और कल्याण सिंह को बर्दाश्त नहीं कर पाना और  2002 के गुजरात दंगों के बाद मोदी को मुख्यमंत्री पद से हटाने के लिए वाजपेयी का राज़ी हो जाना।
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यहाँ यह कहना जरूरी है कि वाजपेयी जी के प्रिय नेता थे नेहरू।

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