Tuesday, December 20, 2016

क़ानूनसम्मत लेकिन कर्तव्यविहीन अधिकारों की अफ़ीम

एक तरफ है नींद से जागे देश का युवा जो कर्तव्यबोध और राष्ट्र-निष्ठा से सराबोर है
तो दूसरी तरफ हैं राजनैतिक दल जो
क़ानूनसम्मत लेकिन कर्तव्यविहीन अधिकारों का अफ़ीम खाने-खिलाने के अलावा कुछ करना ही नहीं चाहते...
आज लोग राज्यसभा को बेकार मान रहे हैं,
कल वे संसदीय लोकतंत्र को ही फालतू कहना शुरू कर देंगे...
आज वे राजनैतिक दलों के अनैतिक आचरण से क्षुब्ध हैं , कल वे बहुदलीय प्रणाली पर ही सवाल उठाने लगेंगे...
आज वे अपना सबकुछ दाँव पर लगानेवाले
एक कर्तव्यनिष्ठ प्रधानमंत्री के अकेले पड़ते जाने से चिढ़े हुए हैं, कल वे एक अधिनायक को देश की बागडोर सौंपने की बात करेंगे...
बस देखते जाइए, देश का सत्ता-संस्थान नहीं संभला तो लोग या तो बैरकों में घुसकर सेना के हाथ में देश की कमान थमा देंगे या फिर मोदी या मोदी जैसे किसी व्यक्ति को अपना नेता घोषित कर सारे अधिकार उसे दे देंगे...
यह है आज की परिवर्तनकामी जनता की बेचैनी का आलम और नेता-अभिजात वर्ग नोटबंदी से ही चिपका हुआ है!
19.12

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