Wednesday, December 7, 2016

राजस्थान के झाऊ चूहा को बिहार में साही कहते हैं!

दोस्तो, राम राम।
आज सुबह की शुरुआत बड़ी चुटीली रही। श्री संजय कुमावत जावला की पोस्ट से मिले ज्ञान-सादृश्य के आधार पर मैंने तुक्का मारा कि राजस्थान के झाऊ चूहा को बिहार में साही कहते हैं।
इस पर मेरे मित्र डॉ Sarvesh Tripathi ने उसे जीवविज्ञान के स्रोतों के आधार पर न सिर्फ गलत बताया बल्कि उसमें साहित्य की छौंक भी डाल दी: " संजय कुमार जावला की एक फेसबुक पोस्ट पर टिप्पणी लिखते हुये विद्वान Prof. Chandrakant P Singh ने लिखा है कि झाऊचूहा को बिहार मे साही कहते हैं जबकि प्राणि विज...्ञान मे दोनो बिलकुल अलग जीव माने गये हैं। साही की family Hysricidae और zoological name Hystrux Indica है जबकि झाऊचूहा की family Erinaceidae और Zoological name Pareaechinus micropus है। बताया गया है कि झाऊचूहा मेढक जैसे जीवों को खाने वाला माँसाहारी है जबकि साही पौधे, फल,अनाज व छोटे कीड़े खाने वाला प्राणि है। झाऊचूहा भारत के रेगिस्तानी क्षेत्र मे पाया जाता है जबकि साही अनेक क्षेत्रों में।
Prof. Chandrakant P Singh नवोन्मेषी व आधुनिक (post 2014) युग के जाने माने सिद्धान्त प्रतिपादक है। प्रतिदिन आप उनके फेसबुक पोस्ट पर राजनीति शास्त्र, समाज शास्त्र,इतिहास, अर्थशास्त्र, मानव विज्ञान, भाषा विज्ञान, साहित्य, धर्मशास्त्र, जनसंचार आदि अनेक विषयों के अभिनव सिद्धान्तों से अवगत हो सकते। अब झाऊचूहा और साही को एक ही जन्तु बताकर वह सन्ता बन्ता सेकुलर कम्युनल से अलग life science के क्षेत्र मे आ गये हैं। उनके इस नवीन सिद्धान्त को न माना तो देशद्रोह, राष्ट्रद्रोह कुछ भी हो सकता है इसलिये आज से झाऊचूहा और साही एक ही जन्तु हैं।"
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इस नाचीज़ ने भी अपना पक्ष रखा:

"हा हा हा। आभार, इस त्रुटिसुधार के लिये। अगर आप ऐसा न करते तो मैं झाऊ चूहा और साही को एक ही मानता रहता क्योंकि जीवविज्ञान का कभी भी छात्र न होने के कारण चार पीढ़ियों से चिकित्सा और भैषज्य से जुड़े अपने परिवार में भी मेरी स्थिति "ब्राह्मण समाज में ज्यों अछूत" जैसी रही है। आपने भी उसपर मुहर लगा दी।
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लेकिन अगली बार ऐसी ग़लती नहीं होगी इसकी कोई गारंटी नहीं है क्योंकि मैं नेहरू सिंड्रोम का भी शिकार हूँ: 'तन से भारतीय मन से यूरोपीय'। मैं भी अपना एकाँखा ज्ञान हर जगह आरोपित करता रहता हूँ ।
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आदत की भी बात है जैसे पंजाब के एक प्रतिष्ठित अख़बार के सर्वेसर्वा अपनी संपादकीय बैठकों में अक्सर कहते हुये सुने जाते थे:
"...I DOESN'T want that ..."
फिर किसी उपसंपादक से इशारा पाने पर अपनी गलती को कुर्सी (पद) का कवर देते:
जो मजा DOESN'T में है वह DON'T में कहाँ!"

3.12.16

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