Sunday, December 31, 2017

ईसा मसीह पर भारत का दावा किसी से भी कहीं ज़्यादा है


25.12.17
ईसा मसीह पर भारत का दावा किसी से भी कहीं ज़्यादा है

ईसाई वह जो माने कि ईसा मसीह क्रॉस पर लटकाने से मरे थे और दुनियाभर के पापों का अकेले प्रायश्चित कर गए। उनका क्रॉस पर मरना झूठ साबित हो चुका है पर चर्च इसे जानते हुए भी नहीं मानता क्योंकि खरबों रुपये का उसका मतान्तरण का धंधा इसी झूठ पर टिका है।
क़ुरआन भी इसे स्वीकारता है कि ईसा मसीह की मौत सूली पर नहीं हुई थी। शोध यह भी कहते हैं कि ईसा मसीह मरियम के साथ भागकर कश्मीर आ गए, बौद्धों ने उन्हें बोधिसत्व कहा, लंबी आयु में वे कश्मीर में ही मरे, उनकी मज़ार को रोज़ाबल कहते हैं, मरियम रास्ते में ही मृत्यु को प्राप्त हुईं और वे जिस जगह मुदफ़न हैं उसे "मारी दा मज़ार" कहते हैं जो कश्मीर से सटे पाकिस्तान के सीमावर्ती इलाके में आता है।
ईसा मसीह के साथ जो यहूदी लोग कश्मीर आये उन्हें अभी भी वहाँ "बनी इसराइल" (अपना इज़राइल) कहते हैं और उनका मूल पेशा भी वही है जो 2000 हज़ार साल पहले आये उनके पूर्वजों का था: भेड़ पालन।
आज गोरो के सामने अस्मिता का संकट पैदा हो गया है कि उनके देवपुत्र ईसा मसीह को भारत ने न सिर्फ शरण दी बल्कि उनके पहले उपदेश (Sermon on the Mount) में भी महात्मा बुद्ध के सारनाथ प्रवचन की धमक है। और जो उनके पास है वह तो सेंट पॉल की धन्धेबाज़ी कला का नमूना मात्र है, वह चर्चियत है ईसाइयत नहीं। कहीं इसीलिए तो यह प्रयास नहीं हो रहा कि ईसा मसीह तो हुए ही नहीं? इस तरह भारत के वैचारिक और आध्यात्मिक स्रोतों से मुक्ति मिल जाएगी और अपना धंधा-ए-चर्च भी बना रहेगा क्योंकि चर्च से तो ईसा का वैसे ही कोई नाता नहीं।
पश्चिमी देशों में चर्च, सरकार और उनके रणनीतिक शोध तथा शिक्षा-संस्थानों में कितनी गहरी आंतरिक एकता और समन्वय है इसका अंदाज़ा अमेरिकी राष्ट्रपति रीगन के उस फ़ैसले से लगाया जा सकता है जिसके तहत ओशो को अपमानित करके ओरेगॉन आश्रम से निकाला गया था । इस दौरान उन्हें थेलियम ज़हर दिए जाने के भी दावे किये जाते रहे हैं। लेकिन ओशो को निकाला क्यों गया था? उनको इसलिए निकाला गया था कि उन्होंने ईसा मसीह के भारत-संबंध और चर्च के झूठ को उजागर करने का साहस किया था।
जब यह तय है कि 25 दिसंबर ईसा मसीह का नकली जन्मदिन है तो क्यों न हम असली जन्मदिन पर अपना सांस्कृतिक दावा पेश कर दें और उन्हें बौद्ध परंपरा से मिले बोधिसत्व के सम्मान का विश्वव्यापी प्रचार करें? 25 दिसंबर को ईसा का जन्मदिन इसलिए मनाया जाने लगा कि इस दिन पहले से एक बड़ा त्यौहार मनाया जाता था और इसका लाभ उठाकर ईसाई मिशनरी इस त्यौहार को मनानेवालों को ईसाइयत में कन्वर्ट करना चाहते थे।
एक बात और। भारत में जन्मे हरगोविंद खुराना या चंद्रशेखर को मिले नोबेल पुरस्कार जिस तर्क से अमेरिका के खाते में जाते हैं उसी तर्क से ईसा मसीह भी भारत के खाते में आते हैं, इसमें कोई संदेह नहीं।
©चन्द्रकान्त प्रसाद सिंह
नोट: Holger Kirsten की किताब Jesus Lived in India (Penguin, 1982) काम की है।

0 Comments:

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home