अल्ला vs मुल्ला का इस्लाम: जिहाद के चार चरणों से जुड़ी क़ुरआन की प्रमुख आयतों के उद्धरण -I
■ जिहाद 1.0 (अल्ला का इस्लाम, आयतें मक्का में नाज़िल हुईं, 13 सालों तक मूर्तिपूजा-विरोध और इस्लाम के प्रचार के बावजूद कुछ दर्ज़न लोग ही पैग़म्बर मोहम्मद के अनुयायी बने, मूर्तिपूजक क़बीला क़ुरैश के सदस्यों द्वारा मोहम्मद और मुसलमानों का उत्पीड़न, मोहम्मद द्वारा हिंसक संघर्ष की मनाही और धैर्य पर ज़ोर, 610-622 ई.):
क़ुरआन: सूरा 73: आयत 10-11; सू 52: आ 45, 47-48; सू 109: आ 1,2,6; सू 76:आ 8,9; सू 20: आ 129 ,130, सू 38:आ 15-17; सू 20: आ 134-35; सू 19: आ 83-84; सू 67: आ 26, सू 22:आ 49; सू 23:96; सू 25: आ 52; सू 29: आ 46.
■ जिहाद 2.0 (मुल्ला का इस्लाम, आयतें मदीना में नाज़िल हुईं, मक्का के मूर्तिपूजक क़ुरैश कबीले के लोग शत्रु घोषित जिनके खिलाफ आत्मरक्षार्थ हिंसा की स्वीकृति, पैग़म्बर के अनुयायी यानी मुसलमान इन मक्का वालों के कारवाँ को लूट लेते थे जिस कारण मजबूर होकर उन्हें मुसलमानों पर हमले करने पड़े , लूट यानी मालेगनिमत के पांचवें हिस्से को अल्ला के नाम पर मोहम्मद का हिस्सा घोषित किया गया, मुसलमान एक अलग समुदाय यानी उम्मा घोषित कर दिए गए, 623-24 ई.):
क़ुरआन: सूरा 22: आयत 39-41; सू 22: आ 58.
■ जिहाद 3.0 (मुल्ला का इस्लाम, आयतें मदीना में नाज़िल हुईं, सुरक्षात्मक लड़ाई की स्वीकृति को आदेश में बदल दिया गया, पहले मक्का के मूर्तिपूजक ही शत्रु थे लेकिन बाद में उहूद की लड़ाई के बाद उन मुसलमानों -- मुनाफ़िक़ -- को भी शत्रु घोषित किया गया जिनका मन मूर्तिपूजा से विरत नहीं हुआ था, इस चरण के आंरभिक दौर में यहूदी शत्रु नहीं माने गए थे क्योंकि मोहम्मद साहेब को विश्वास था कि यहूदी उन्हें मोसेज की तरह अपना पैग़म्बर मान लेंगे लेकिन ऐसा न होने पर यहूदी भी शत्रु-सूची में शामिल कर लिए गए, रणनीतिक लाभ के वास्ते कुछ समय के लिए यह भी कहा गया कि मजहब में कोई ज़ोर-जबर्दस्ती नहीं, युद्ध में जीती गई औरतों को रखैल के रूप में रखने की अनुमति, हिंसक जिहाद सर्वोत्तम जिहाद के रूप में आदेशित, 625-28 ई. )
क़ुरआन: सूरा 2: आयत 109; सू 2 : आ 190-94; सू 2: आ 216-17; सू 2: आ 256-57; सू 8: आ 1; सू 8: आ 12-13, 15-18; सू 8: आ 38-42; सू 8: आ 67-69; सू 8: आ 72a; सू 47: आ 4-6, 15; सू 4: आ 74-78a; सू 4: आ 95-96; सू 33: आ 50; सू 48: आ 15-17; सू 48: आ 22-24; सू 48: आ 29a; सू 49: आ 15.
■ जिहाद 4.0 (मुल्ला का इस्लाम, आयतें मदीना में नाज़िल हुईं, सुरक्षात्मक लड़ाई के आदेश को दीनी दायित्व बदल दिया गया, पहले मक्का के मूर्तिपूजक-मुनाफ़िक़- यहूदी ही शत्रु थे लेकिन अब ईसाई समेत सभी ग़ैर-मुसलमान शत्रु घोषित कर दिए गए, मक्का विजय के बाद मूर्तिपूजकों का संहार कर दिया गया,
मोहम्मद ने मक्का की 360 मूर्तियों को तोड़ दिया, मक्कावालों ने 630 ई में आत्मसमर्पण कर दिया, मक्का में मूर्तिपूजकों का प्रवेश प्रतिबंधित हो गया, लड़ाई आक्रामक हो गई, इसी दौर में वह आयत-- सूरा 9:आयत 5-- भी नाज़िल हुई जिसे 'तलवारी आयत' कहा जाता है और जिसे इसके पहले नाज़िल हुई जिहाद संबंधी लगभग 111आयतों पर इसलिए वरीयता हासिल है कि यह बाद में नाज़िल हुई और जिसका ख़ुलासा सूरा 2: आयत 106 के द्वारा भी होता है, इस नियम को नस्ख या Law of Abrogation कहा जाता है, 630-32 ई.)
क़ुरआन: सूरा 9: आयत 1-6; 16; 19-22; 28; 29-31; 38-39, 41; 52,73; 81-86; 122; सूरा 5: आयत 32-33; 51.
प्राथमिक स्रोत:
=========
1. क़ुरआन मजीद. अनुवादक: मु.फारूक खाँ.
2. History of Jihad: From Muhammad to
ISIS. Robert B Spencer.
3. www.answering-Islam. org.
Rev. Richard Bailey.
4. Questioning Islam. Peter Townsend.
5. Slavery, Terrorism and Islam. Peter
Hammond.
6. Qur'an. Translator: A Yusuf Ali.
#AllaKaIslam #MullaKaIslam #Jihad #Islam #Quran #Mecca #Medina
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क़ुरआन: सूरा 73: आयत 10-11; सू 52: आ 45, 47-48; सू 109: आ 1,2,6; सू 76:आ 8,9; सू 20: आ 129 ,130, सू 38:आ 15-17; सू 20: आ 134-35; सू 19: आ 83-84; सू 67: आ 26, सू 22:आ 49; सू 23:96; सू 25: आ 52; सू 29: आ 46.
■ जिहाद 2.0 (मुल्ला का इस्लाम, आयतें मदीना में नाज़िल हुईं, मक्का के मूर्तिपूजक क़ुरैश कबीले के लोग शत्रु घोषित जिनके खिलाफ आत्मरक्षार्थ हिंसा की स्वीकृति, पैग़म्बर के अनुयायी यानी मुसलमान इन मक्का वालों के कारवाँ को लूट लेते थे जिस कारण मजबूर होकर उन्हें मुसलमानों पर हमले करने पड़े , लूट यानी मालेगनिमत के पांचवें हिस्से को अल्ला के नाम पर मोहम्मद का हिस्सा घोषित किया गया, मुसलमान एक अलग समुदाय यानी उम्मा घोषित कर दिए गए, 623-24 ई.):
क़ुरआन: सूरा 22: आयत 39-41; सू 22: आ 58.
■ जिहाद 3.0 (मुल्ला का इस्लाम, आयतें मदीना में नाज़िल हुईं, सुरक्षात्मक लड़ाई की स्वीकृति को आदेश में बदल दिया गया, पहले मक्का के मूर्तिपूजक ही शत्रु थे लेकिन बाद में उहूद की लड़ाई के बाद उन मुसलमानों -- मुनाफ़िक़ -- को भी शत्रु घोषित किया गया जिनका मन मूर्तिपूजा से विरत नहीं हुआ था, इस चरण के आंरभिक दौर में यहूदी शत्रु नहीं माने गए थे क्योंकि मोहम्मद साहेब को विश्वास था कि यहूदी उन्हें मोसेज की तरह अपना पैग़म्बर मान लेंगे लेकिन ऐसा न होने पर यहूदी भी शत्रु-सूची में शामिल कर लिए गए, रणनीतिक लाभ के वास्ते कुछ समय के लिए यह भी कहा गया कि मजहब में कोई ज़ोर-जबर्दस्ती नहीं, युद्ध में जीती गई औरतों को रखैल के रूप में रखने की अनुमति, हिंसक जिहाद सर्वोत्तम जिहाद के रूप में आदेशित, 625-28 ई. )
क़ुरआन: सूरा 2: आयत 109; सू 2 : आ 190-94; सू 2: आ 216-17; सू 2: आ 256-57; सू 8: आ 1; सू 8: आ 12-13, 15-18; सू 8: आ 38-42; सू 8: आ 67-69; सू 8: आ 72a; सू 47: आ 4-6, 15; सू 4: आ 74-78a; सू 4: आ 95-96; सू 33: आ 50; सू 48: आ 15-17; सू 48: आ 22-24; सू 48: आ 29a; सू 49: आ 15.
■ जिहाद 4.0 (मुल्ला का इस्लाम, आयतें मदीना में नाज़िल हुईं, सुरक्षात्मक लड़ाई के आदेश को दीनी दायित्व बदल दिया गया, पहले मक्का के मूर्तिपूजक-मुनाफ़िक़- यहूदी ही शत्रु थे लेकिन अब ईसाई समेत सभी ग़ैर-मुसलमान शत्रु घोषित कर दिए गए, मक्का विजय के बाद मूर्तिपूजकों का संहार कर दिया गया,
मोहम्मद ने मक्का की 360 मूर्तियों को तोड़ दिया, मक्कावालों ने 630 ई में आत्मसमर्पण कर दिया, मक्का में मूर्तिपूजकों का प्रवेश प्रतिबंधित हो गया, लड़ाई आक्रामक हो गई, इसी दौर में वह आयत-- सूरा 9:आयत 5-- भी नाज़िल हुई जिसे 'तलवारी आयत' कहा जाता है और जिसे इसके पहले नाज़िल हुई जिहाद संबंधी लगभग 111आयतों पर इसलिए वरीयता हासिल है कि यह बाद में नाज़िल हुई और जिसका ख़ुलासा सूरा 2: आयत 106 के द्वारा भी होता है, इस नियम को नस्ख या Law of Abrogation कहा जाता है, 630-32 ई.)
क़ुरआन: सूरा 9: आयत 1-6; 16; 19-22; 28; 29-31; 38-39, 41; 52,73; 81-86; 122; सूरा 5: आयत 32-33; 51.
प्राथमिक स्रोत:
=========
1. क़ुरआन मजीद. अनुवादक: मु.फारूक खाँ.
2. History of Jihad: From Muhammad to
ISIS. Robert B Spencer.
3. www.answering-Islam. org.
Rev. Richard Bailey.
4. Questioning Islam. Peter Townsend.
5. Slavery, Terrorism and Islam. Peter
Hammond.
6. Qur'an. Translator: A Yusuf Ali.
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